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________________ प्रकीर्णक-साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा : 105 प्रकार हैं-भक्तपरिज्ञामरण, इंगिनीमरण एवं पादपोपगमनमरण / इन सभी समाधिमरणों में ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप की आराधना की जाती है। 3. मृत्यु होना सुनिश्चित है / धीर पुरुष भी मरता है और कायर पुरुष भी मरता है। जब मरना सुनिश्चित है तो धीर पुरुष की भाँति ही क्यों न मराजाय, ताकि मरना सार्थक हो जाय, यह प्रकीर्णकों की प्रेरणा है / 4. प्रकीर्णकों में समाधिमरण के पूर्व संलेखना की बात कही है और संलेखना को बाह्य एवं आभ्यन्तर अथवा शरीर एवं कषाय के भेद से दो प्रकार का निरूपित किया गया है और कषाय की संलेखना के अभाव में शरीर की संलेखना को निरर्थक प्रतिपादित किया 5. कषाय की संलेखना के साथ सात प्रकार के भय, आठ प्रकार के मद, तीन प्रकार के गारव, तीन प्रकार के शल्य, चार प्रकार की संज्ञाओं और तैंतीस प्रकार की आशातना आदि को त्यागने का उल्लेख प्रकीर्णकों में ही प्राप्त होता है / इनमें ममत्व व्युच्छेद पर भी बल दिया गया है। 6. भक्तपरिज्ञा, इंगिनी एवं पादपोपगमन मरणों के भेदों का स्वरूप सहित वर्णन कर प्रकीर्णकों ने समाधिमरण के प्रत्यय को अधिक आकर्षक एवं स्पष्ट किया है / 7. समाधिमरप्प के पूर्व समस्त जीवों से क्षमायाचना करना (आत्मशुद्धि के लिए) आवश्यक माना गया है। 8. समाधिमरण से पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा होती है तथा नवीन कर्मों के आसव का निरोध होता है जिससे मुक्ति का मार्ग सरल हो जाता है / इससे पूर्वबद्ध कर्मों का स्थितिघात एवं रसघात होता है / 9. जो जीव समाधिमरण पूर्वक मरता है वह उसी भव में अथवा अधिकतम 7-8 भवों में मोक्ष प्राप्त कर लेता है / 10. अनशन एवं उपधि के त्याग के साथ शरीर का त्याग भी आवश्यक है / शरीर का त्याग करने का आशय उसके दुःख-सुख से अप्रभावित होने अथवा आत्मा से उसे - भिन्न अनुभव करने से है। 11. समाधिमरण पूर्वक मरने वाला निर्भय होकर मरता है, सबके प्रति मैत्री-भाव रखता हुआ मरता है, उसका किसी के प्रति वैर-भाव नहीं रहता / वह व्याकुल होकर नहीं मरता। वह अनाकुल रहता हुआ समाधिभाव में देह छोड़ देता है। - 12. मरण के विविध प्रकारों में यह सबसे उत्कृष्ट मरण है / 13. यह आत्महत्या एवं युद्ध क्षेत्र में मरने से भित्र है क्योंकि उनमें कषाय के आवेश में मरण होता है जबकि समाधिमरण में कषायों पर जय प्राप्त की जाती है / 14. समाधिमरण एक प्रकार से सजगतापूर्वक मरण है, जिसे पूर्ण तैयारी के साथ
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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