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________________ 104 : डॉ० धर्मचन्द जैन आगे कहा हैपंचनमोक्कारवरत्थसंगओ अणसणावरणजत्तो / वयकरिवरखंधगओ मरण रणे होइ दुज्जेओ / / 76 अर्थात् पाँच नमस्काररूपी श्रेष्ठ अस्त्र से युक्त, अनशनरूपी कवच को धारण किया हुआ तथा व्रतरूपी हाथी के स्कन्ध पर आरूढ़ साधक मरणरूपी युद्धक्षेत्र में दुर्जेय होता ___9. देह विसर्जन देह छोड़कर जब आत्मा का महाप्रयाण हो जाता है, तब देह का विसर्जन कब एवं किस प्रकार किया जाना चाहिए इसके सम्बन्ध में प्रकीर्णकों में कोई संकेत नहीं मिलता, किन्तु भगवती आराधना में मरे हुए साधु की देह को वहां से तत्काल हटाने का उल्लेख समाधिमरण और आत्महत्या जैनेतर सम्प्रदाय के लोग या समाधिमरण के स्वरूप से अनभिज्ञ लोग इसे : आत्महत्या की संज्ञा देते हैं, किन्तु उनका यह मन्तव्य उचित नहीं है क्योंकि आत्महत्या करते समय तो कषायों में अभिवृद्धि अर्थात् संक्लेश होता है जबकि समाधिमरण में कषायों पर जय प्राप्त की जाती है / यह साधना का एक उत्कृष्ट प्रकार है, जिसके द्वारा ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप का आराधन किया जाता है / मैंने आत्महत्या एवं समाधिमरण का अन्तर इसप्रकार किया है: आत्महत्या तु सावेशा रागरोषविमिश्रिता। . समाधिमरणं तावत् समभावेन तज्जयः / / 77 अर्थात् आत्महत्या तो आवेशपूर्वक की जाती है / इसमें राग-द्वेष का भाव मौजूद रहता है जबकि समाधिमरण में तो राग-द्वेष को समभावपूर्वक जीता जाता है। युद्ध में जो सैनिक लड़ते हुए मारे जाते हैं वह आत्महत्या तो नहीं है, किन्तु उसमें प्राप्त मरण भी बालमरण अथवा अज्ञानमरण की श्रेणी में ही आता है क्योंकि उसका सम्बन्ध कषायजय से नहीं अपितु राग-द्वेष से ही है / उपसंहार प्रकीर्णक-साहित्य में वर्णित समाधिमरण की अवधारणा के सम्बन्ध में निम्नांकित प्रमुख बिन्दु उभरकर आते हैं 1. अंग-सूत्रों में वर्णित पंडितमरण अथवा समाधिमरण का प्रकीर्णकों में विस्तार से निरूपण हुआ है, किन्तु अंग-सूत्रों में स्थापित मूलस्वरूप एवं लक्ष्य सुरक्षित रहा है। 2. समाधिमरण मुक्ति के मार्ग की एक उत्कृष्ट साधना है / मुख्यतः इसके तीन
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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