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________________ धर्म और अर्थ मोक्ष जीवन का अन्तिम लक्ष्य है, साध्य है। धर्म उसे प्राप्त करने के लिए साधन स्वरूप है। फिर, मोक्ष स्वतन्त्र पुरुषार्थ कैसे ? वस्तुतः धर्म पुरुषार्थ का उत्तरार्द्ध मोक्ष पुरुषार्थ है। इस प्रकार मोक्ष पुरुषार्थ की साधना में अर्थ और काम गौण हो जाते हैं। चारों पुरुषार्थों में अर्थ साध्य स्वरूप तो नहीं है, परन्तु आधारभूत एवं सहायक है। धर्म पुरुषार्थ के पूर्वार्द्ध में जीवन की जो साधना की जाती है, उसमें अर्थ और काम की संयमित साधना सम्मिलित है। परन्तु अणगार-धर्म में अर्थ और काम पुरुषार्थ निषिद्ध है। आगार-धर्म की आराधना में अर्थ से जीवन की वे समस्त सुविधाएँ और सामग्री जुटाई जाती है, जिसकी आवश्यकता शेष तीनों पुरुषार्थों के लिए होती है। काम और अर्थ जैन परम्परा में चारों पुरुषार्थों में सन्तुलन के लिए बार-बार निर्देश किया गया है। मोक्ष पुरुषार्थ साध्य रूप हाने से तथा धर्म पुरुषार्थ सहायक रूप होने से अर्थ पुरुषार्थ कभी अनर्थ का कारण और काम पुरुषार्थ कभी अनाचार का कारण नहीं बन सका। अर्थ और काम पर यह नियन्त्रण जीवन, समाज और देश के लिए वरदान बन गया। अर्ज और काम मनुष्य को मौज-मस्ती और प्रत्यक्ष सुख प्रदान करते हैं इसलिए वह अर्थ और काम की ओर तुरन्त प्रवृत्त हो जाता है। यदि अर्थ और काम पर धार्मिक, नैतिक और सामाजिक नियन्त्रण नहीं हो तो परिवार और समाज के मूलाधार ही खिसक जाएँगे। मोक्ष और अर्थ . पुरुषार्थ चतुष्टय में अर्थ पुरुषार्थ के आधारभूत स्थान से जीवन की सम्पूर्ण साधना में अर्थ की महत्ता सुनिश्चित होती है। अर्थ के साथ पुरुषार्थ शब्द कर्म, कौशल, कर्त्तव्य और श्रम की ओर संकेत है। धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ के द्वारा अर्थोपार्जन में न्याय-नीति की शर्त से साधन शुद्धि की प्रबल प्रेरणा दी गई है। चारों पुरुषार्थों के अन्तर्सम्बन्ध पारिवारिक और सामाजिक क्षेत्र में अर्थ प्रमुखतम और आधारभूत पुरुषार्थ है ही; धार्मिक क्षेत्र में भी अर्थ ने खासा स्थान बना लिया। जिस अर्थ को धर्म के लिए सहायक माना गया, उस अर्थ की निर्विघ्न और निर्दोष प्राप्ति के लिए धर्म को भी सहायक माना गया। लोग आज भी अर्थ प्राप्ति के लिए विशेष धर्म साधनाएँ, (43)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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