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________________ परिच्छेद दो पुरुषार्थ चतुष्टय और अर्थ चार पुरुषार्थ मानव प्रकृति में चार तत्व हैं - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। आगम साहित्य में इन चार तत्वों के लिए कहा गया है' - 1. कामकामे - मानव कामकामी है। काम उसकी प्रकृति का एक तत्व है। मनुष्य पर्याय में मैथुन संज्ञा (कामेच्छा) को प्रबलतम बताया गया है। काम के साथ पुरुषार्थ शब्द प्रयोग पारिवारिक व सामाजिक दायित्वों का बोध कराता है। इस दायित्व-बोध से व्यक्ति की काम-साधना निष्काम-साधना की ओर अग्रसर होती है। जीवन के उदात्त लक्ष्य उसके निकट आ जाते हैं या वह उन महान लक्ष्यों के निकट पहुँच जाता है। पुरुषार्थ की सफलता और सार्थकता उसके उत्कर्ष में है। 2. अत्थलोलुए - वह अर्थ का आकांक्षी है। आगम वर्णित चार संज्ञाओं (प्राणियों की मूलभूत इच्छाएँ) में एक है - परिग्रह यानि संग्रह-वृत्ति / अर्थ-पुरुषार्थ मानव की इस वृत्ति की संपूर्ति में श्रम, कौशल आदि को आवश्यक बनाता तथा उसे नीति-शास्त्र से अनुशासित करता है। अर्थ पुरुषार्थ के साथ आहार संज्ञा की तषप्त भी जुड़ी है। 3. धम्म सद्धा - मनुष्य में धर्म की श्रद्धा है। चरित्र की श्रद्धा है। आस्था है। यह आस्था उसे भय से मुक्त होने में सहायक बनती है। काम और अर्थ अस्थायी रूप से भय-मुक्ति का भरोसा दिलाते हैं, जबकि धर्म चिरस्थायी और आभ्यन्तर भयमुक्ति की साधना का नाम है। 4. संवेग - वह मुक्त होना चाहता है। मुक्ति अभय की शाश्वत अवस्था है। भारतीय और जैन संस्कृति में मनुष्य जीवन की दृष्टि से इन्हें चार पुरुषार्थों के रूप में वर्णित किया गया है। प्राकृत कथाओं में इनमें से दो को ही पुरुषार्थ माना है - काम और मोक्ष। शेष दो पुरुषार्थ इनकी प्राप्ति में सहायक बताये गये हैं। धर्म पुरुषार्थ को मोक्ष और अर्थ पुरुषार्थ को काम के लिए सहायक बताया गया है।' (42)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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