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________________ आगमों में गणित सम्बन्धी आश्चर्यजनक सामग्री प्राप्त होती है। इससे इस निष्कर्ष पर पहँचा जा सकता है कि आगम-युग में अर्थशास्त्र सम्बन्धी स्वतन्त्र विषय था। मध्यकाल में महावीराचार्य (आठवीं-नौवीं सदी) ने तो गणित पर स्वतन्त्र ग्रन्थ 'गणित सार संग्रह' लिखकर जैन-गणित अथवा गणितानुयोग को नये आयाम दिये। 4. द्रव्यानुयोग : द्रव्यानुयोग के अर्थशास्त्रीय अध्ययन में पर्यावरण और उसके संरक्षण की तर्कसंगत समझ बढ़ती है। पर्यावरण आर्थिकी के अध्ययन में द्रव्यानुयोग का महत्व है। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री और अन्य मनीषियों ने आगम साहित्य की अनेक विशेषताएँ बतलाई हैं। उनमें से कुछ विशेषताएँ दृष्टव्य हैं - 1 मानवता की प्रतिष्ठा हेतु जातिभेद और वर्गभेद की निस्सारता। 2 शील, सदाचार और संयम का निरूपण। 3 शोषित और शोषक में समता लाने के लिए आर्थिक विषमताओं में सन्तुलन उत्पन्न करने हेतु अपरिग्रहवाद और संयम को जीवन में उतारने की प्रवृत्ति। . 4 क्रियाकाण्डों का वैचारिक विरोध। 5 साधना के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का निरूपण। 6 अपने पुरुषार्थ पर विश्वास कर सर्वतोमुखी विशाल दृष्टि का विकास। 7 अपने को स्वयं अपना भाग्य विधाता समझ कर परोक्ष शक्ति का पल्ला छोड़ पुरुषार्थ में प्रवृत्त होने की प्रेरणा। 8 विविध आख्यानों द्वारा जीवन की अनेक दृष्टियों से व्याख्या। 1 मिथ्याभिमान छोड़कर उदारतापूर्वक विचार सहिष्णु बन अपनी भूल को सहर्ष स्वीकार करने की प्रवृत्ति। 10 विरोधी विचारों को महत्व देना तथा अपने विचारों के समान अन्य के विचारों का भी आदर करना। -- 11 निर्भय और निर्वैर होकर शान्ति के साथ जीना और दूसरों को जीवित रहने देने की प्रवृत्ति। (29)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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