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________________ 12. निवेश/सन्निवेश (जहाँ सार्थवाह आकर उतरते हो) 13. सम्बाध-सम्बाह (जहाँ किसान रहते हो अथवा अन्य गाँव के लोग अपने गाँव से धन आदि की रक्षा के निमित्त पर्वत, गुफा आदि में आकर ठहरे हुए हो) 14. घोष (जहाँ ग्वाले आदि रहते हो) 15. अंशिका (गाँव/नगर का अर्ध, तृतीय या चतुर्थ भाग) और . . 16. पुटभेदन (जहाँ व्यापारी अपनी चीजें बेचने आते हो)। . 3. व्यवहार-सूत्र : चरणानुयोगमय इस आगम में दस उद्देशक हैं। 267. सूत्र संख्या और 373 अनुष्टुप श्लोक प्रमाण उपलब्ध मूल पाठ है। आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत - ये व्यवहार के पाँच प्रकार हैं। इसके रचयिता श्रुतकेवली भद्रबाहु माने जाते हैं। निशीथ-सूत्र : निशीथ भाष्य श्लोक 64 के अनुसार निशीथ का अर्थ अप्रकाश है। उसमें कहा गया कि जो रहस्य को धारण कर सके यानि गोपनीयता बनाए रख सके वही निशीथ को पढ़ने का अधिकारी है। चरणानुयोगमय इस आगम में विशेषतः प्रायश्चित का विधान है। 20 उद्देशकों के 1405 गद्य-सूलों में 812 अनुष्टुप श्लोक प्रमाण उपलब्ध मूल पाठ है।" इन चार छेद-सूत्रों सहित इकतीस आगम-ग्रन्थों का परिचय हुआ। बत्तीसवाँ है - आवश्यक-सूत्र : इसे प्रतिक्रमण-सूत्र भी कहा जाता है। इसमें इन छ: आवश्यकों की आराधना का निर्देश है - सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान / प्रतिक्रमण के अन्तर्गत 99 अतिचार एवं मिथ्यात्व, प्रमाद, कषाय, अविरति व अशुभ-योग का प्रायश्चित किया जाता है। गृहस्थ और साधु दोनों के लिए प्रतिक्रमण आवश्यक बताया गया है। प्रतिक्रमण उत्तम जीवन जीने की कला की शिक्षा देता है। आवश्यक में 100 श्लोक प्रमाण मूल पाठ है; जिसमें 91 गद्य-सूत्र और 9 पद्य-सूत्र हैं। इसमें वर्णित गृहस्थाचार का अर्थशास्त्रीय महत्व आगे बताया गया है। प्रकीर्णक साहित्य शौरसेनी आगम साहित्य के परिचय से पूर्व प्रकीर्णक-साहित्य का परिचय दिया जा रहा है। श्वेताम्बर जैन परम्परा द्वारा आगम ग्रन्थों की मान्यता की दो विचारधाराएँ हैं - 32 आगम और 45 आगम। पैंतालीस आगमों के अन्तर्गत (16)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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