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________________ प्राचीन छेद सूत्रों का समय ई. पूर्व चौथी सदी का अन्त और तीसरी का प्रारम्भ माना गया है।" डॉ. विण्टरनित्ज छः छेद सूत्रों के नाम देते हैं - कल्प, व्यवहार, निशीथ, महानिशीथ, पिण्ड-निर्युक्ति और ओघ-नियुक्ति। चार छेद-सूत्रों का संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जा रहा है। 1. दशाश्रुतस्कन्ध : ठाणांग में इसका अपर नाम आचार दशा प्राप्त होता है। इसमें दस अध्ययन है। 216 गद्य-सूत्र और 52 पद्य-सूत्रों में 1830 अनुष्टुप श्लोक प्रमाण उपलब्ध पाठ है। कल्पसूत्र को दशाश्रुतस्कन्ध का आठवाँ अध्ययन माना जाता है। इसमें भगवान महावीर की जीवनी और साधकों के आचार-विधान पर प्रकाश डाला गया है। 2. बृहत्कल्प : इसमें 6 उद्देशक हैं; जिनमें 81 अधिकार, 206 सूत्र और 473 श्लोक प्रमाण उपलब्ध मूल पाठ है। जैन श्रमणों के प्राचीनतम आचारशास्त्र का यह महाशास्त्रं है।' साधु किस स्थान पर कितने समय ठहर सकता है, इसका विशेष विवरण इस सूत्र में है। जिन 16 प्रकार के स्थानों का वर्णन इस ग्रन्थ में हैं, उनसे प्राचीन अर्थिक व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है। ये सोलह स्थान है। - 1. ग्राम (जहाँ 18 प्रकार के कर लिये जाते हो) 2. नगर (जहाँ 18 प्रकार के कर नहीं लिये जाते हो) 3. खेट (जिसके चारों ओर मिट्टी की दीवार हो) 4. कर्बट (जहाँ कम लोग रहते हो) 5. मडम्ब (जिसके बाद ढाई कोस तक कोई गाँव न हो) 6. पत्तन (जहाँ सब वस्तुएँ उपलब्ध हो) 7. 'आकर (जहाँ धातु की खाने हो) 8. द्रोणमुख (जहाँ जल व स्थल को मिलाने वाले मार्ग हो, जहाँ समुद्री माल आकर उतरता हो) 9. निगम (जहाँ व्यापारियों की वसति हो) 10. राजधानी (जहाँ राजा का आवास और राजकाज हो) 11. आश्रम (जहाँ तपस्वी आदि रहते हो) (15)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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