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________________ हेमचन्द्राचार्य और कुमारपाल ( 12वीं शती) आख्यान मणिकोष के प्रभाकर आख्यान में धनार्जन को मुख्य बताते हुए कहा गया - भूखे लोगो द्वारा व्याकरण का भक्षण नहीं किया जाता / प्यासों के द्वारा काव्य रस का पान नहीं किया जाता। अतएव हिरण्य का ही उपार्जन करो, क्योंकि उसके बिना सब कलाएँ निष्फल है। आचार्य हेमचन्द्र ने धन (सत्ता, समाज और अर्थ-व्यवस्था) में धर्म (अहिंसा, संयम, नैतिकता) की प्रतिष्ठा की। उन्होंने न सिर्फ जैन परम्परा पर, अपितु सम्पूर्ण भारतीय जन-जीवन पर जो छाप छोड़ी, उसका सुप्रभाव आज भी विद्यमान है। उन्होंने साढ़े तीन करोड़ श्लोक प्रमाण विपुल साहित्य की रचना की। उनके समय को भारतीय समाज, संस्कृति और साहित्य के उत्कर्ष का समय कह सकते हैं। जैसे चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के लिए अर्थशास्त्र की और सोमदेव ने राजा महेन्द्र के लिए नीतिवाक्यामृत की रचना की, उसी प्रकार हेमचन्द्राचार्य ने राजा कुमारपाल के लिए लघु अर्हन्नीति की रचना की। उन्होंने सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल को अपने उपदेशों से प्रभावित किया। विक्रम संवत् 1194 में कुमारपाल ने शासन की बागडोर संभाली और उसके बाद राज्य की व्यवस्थाओं में युगान्तरकारी परिवर्तन किये। हेमचन्द्राचार्य के मार्गदर्शन पर उन्होंने जन-हितकारी अनेक राजाज्ञाएँ प्रसारित करवाईं। उनकी राजाज्ञा उत्तर में तुरुस्क लोगों के प्रान्त तक, पूर्व में गंगा नदी के किनारे तक, दक्षिण में विन्ध्याचल तक और पश्चिम में समुद्र तक मानी जाती थी। उनके सारे राजकाज में श्रावक उदयन मेहता बतौर मन्त्री के रूप में सहयोग करते थे। कुप्रथाओं की समाप्ति : कुमारपाल के राज्यासीन होने के पूर्व तक किसी महिला के विधवा अथवा असहाय हो जाने पर उनकी सम्पत्ति राज्य द्वारा ले ली जाती थी और बदले में मामूली वृत्ति प्रदान की जाती थी। इस राजकीय व्यवस्था के चलते महिलाओं को अत्यन्त दयनीय और तिरस्कृत अवस्था में जीना पड़ता था। कुमारपाल ने कानूनन इस नियम को सदा-सदा के लिए समाप्त करके महिलाओं के आत्म-सम्मान को लौटाया और समाज को बुनियादी रूप से मजबूत बनाया। दीन-दुखियों और असहायों के लिए राज्य की ओर से विशेष सुविधाएँ थीं। सम्पूर्ण राज्य में पशु-बलि, पशु-हिंसा, शिकार, नशा-मुक्ति, द्यूत-क्रीड़ा, मृत्यु-दण्ड आदि पर कुमारपाल ने पूर्ण प्रतिबन्ध लगवा दिया। कुमारपाल सच्चे प्रजापाल थे। उन्होंने प्रजा में नैतिकता, सदाचार और विश्वास स्थापित किया था। इसलिए उनके द्वारा प्रसारित राजाज्ञाओं का अनुपालन जनता द्वारा इच्छापूर्वक किया (326)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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