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________________ सहयोग करना चाहिये। सोमदेव कहते हैं - राजा को अपने यहाँ के माल को बाहर जाने से रोकने अथवा भेजने के लिए तथा अपने यहाँ बाहर के माल को आने या न आने देने के लिए विवेकसम्मत करारोपण और कर-मुक्ति की व्यवस्था करनी चाहिये।" सोमदेवसूरि कहते हैं फसल की कटाई के समय (लवणकाल) में गाँव में सेना के प्रवेश पर प्रतिबन्ध होना चाहिये। सोमदेव के विचार नीति और अर्थनीति, धर्म और धन तथा चारों पुरुषार्थों के सन्तुलन और समन्वय पर बल देते हैं। नीतिवाक्यामृत के दूसरे अर्थसमुद्देश: के 11 वाक्यों में सोमदेवसूरि अर्थ की महत्ता, मर्यादा और सीमा के बारे में सारगर्भित विचार प्रकट करते हैं ।उनका नीतिवाक्यामृत कौटिलीय अर्थशास्त्र की कोटि का ग्रन्थ माना जाता है। अर्थशास्त्र का प्रतिपाद्य विषय राज्य तथा उसके अन्तर्गत निवास करने वाली जनता का कल्याण है। राज्य की वृद्धि और संरक्षण तथा उसमें निवास करने वालों की सुरक्षा तथा कल्याण किस प्रकार से हो सकता है, इन उपायों का वर्णन अर्थशास्त्र में किया जाता है। अर्थशास्त्र का एक उद्देश्य राजा का पथ प्रदर्शन करना और शासन की, प्रजा की समस्याओं का समाधान करना है। नीतिवाक्यामृत में राजा, राज्य, मन्त्रीपरिषद्, न्याय-व्यवस्था, दण्ड-नीति, दुर्ग, कोष, सेना, अन्तराष्ट्रीय सम्बन्ध आदि पर नीतिपूर्ण तरीकों से विमर्श किया गया हैं। नीतिवाक्यामृत के द्वारा सोमदेव न सिर्फ तत्कालीन समय और समाज का, अपितु युगों तक जमाने का मार्गदर्शन करते हैं। . निरस्त्रीकरण का प्रथम सन्देश दसवीं शताब्दी में तत्कालीन भारतीय जन-जीवन को प्रभावित करने वालों में चामुण्डराय का नाम भी उल्लेखनीय है। उनकी नेमीचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती से मित्रता थी। नेमीचन्द्र ने चामुण्डराय के निमित्त से गोम्मटसार की रचना की थी। श्रमणबेलगोला में भगवान बाहुबलि की 56 फीट ऊँची विश्व-विख्यात मूर्ति की स्थापना चामुण्डराय के द्वारा की गई थी। बाहुबलि प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के द्वितीय पुत्र थे। चक्रवर्ती सम्राट भरत, जिनके नाम से हमारे देश का नाम भारत हुआ, ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र और बाहुबलि के अग्रज थे। दोनों भाइयों में मामूली बात को लेकर झगड़ा हो गया। बात युद्ध तक पहुँच गई। असंख्य वर्षों पूर्व हुए उस युद्ध में बाहुबली ने शस्त्रास्त्र के प्रयोग की स्पष्ट मनाही करके संसार को पहली बार निःशस्त्रीकरण का सन्देश दिया। चामुण्डराय द्वारा संस्थापित भगवान बाहुबलि की भव्य विशाल प्रतिमा आज भी सर्वनाशी परमाणु आयुधों से भरे विश्व को निरस्त्रीकरण का मंगल-सन्देश दे रही है। (325)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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