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________________ चन्द्रगुप्त मौर्य' और चाणक्य पूर्ण शाकाहारी थे। अहिंसा, जीव-दया, सत्य, श्रम, सन्तोष, कर्मवाद आदि जीवन मूल्य उनके ग्रन्थों में प्रकट होते हैं। जैसे :12. जिस धर्म में दया नहीं हो, उसे छोड़ देना चाहिये। 13. काम के समान रोग नहीं, क्रोध के समान आग नहीं और ज्ञान से बढ़कर सुख नहीं है। 14. जिसके परिवार में प्रेम हो और धन में सन्तोष हो, उसके इस दुनिया में ही - स्वर्ग है। 15. जीव स्वयं ही अच्छे-बुरे कर्म करता है और स्वयं ही भोगता है। स्वयं ही संसार में भ्रमता है और स्वयं ही संसार के बन्धन से छूटता और मोक्ष पा जाता है। 16. सत्य के समान तप नहीं है। सन्तोष के समान सुख नहीं है। तृष्णा के समान रोग नहीं है और दया से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। 17. जो मांस खाते और शराब पीते हैं, उन पुरुष रूपी पशुओं से पृथ्वी दुख पाती है। 18. जो मांस खाते हैं, उनमें दया नहीं होती। लोभी में सत्य नहीं होता। पराई स्त्रियों ' में आसक्त रहने वालों में पवित्रता नहीं होती। . 19. जुए के व्यसन से सब कार्य बिगड़ जाते हैं। शिकार से धर्म और अर्थ दोनों का नाश होता है। चाणक्य ने विशाल साम्राज्य का संगठन और संचालन किया, परन्तु उनकी निजी सम्पदा स्वल्प थी। चाणक्य के जीवन और नीति में जगह-जगह महावीर के स्वरों की गूंज सुनाई पड़ती है। मध्ययुगीन भारतीय जन-जीवन तथा समाज-व्यवस्था पर ई.पू. दूसरी सदी के मौर्य शासन, कौटिलीय अर्थशास्त्र और चाणक्य-नीति का भी प्रभाव रहा। ई.पू. 152 में स्वर्गवासी होने वाले जैन धर्मानुयायी सम्राट् खारवेल ने भी प्रजा-हित, लोक-कल्याण, कला, शिल्प तथा राज्य में आधारभूत सुविधाओं के विकास में ऐतिहासिक योगदान किया। इसी कालखण्ड में अहिंसक समाज-व्यवस्था को आगे बढ़ाने में सम्राट अशोक और सम्प्रति ने अप्रतिम योगदान किया। अनेक विद्वानों और विचारकों का मत है कि स्वयं ईसा भारत आये थे और वर्षों तक यहाँ रहे थे। उस समय सम्पूर्ण भारतवर्ष में भगवान महावीर और बुद्ध के उपदेशों का भारी प्रचार-प्रसार था। ईसा के जीवन पर श्रमण परम्परा के इन दो तेजस्वी नक्षत्रों भगवान महावीर और बुद्ध का गहरा प्रभाव पड़ा था। (318)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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