SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय इतिहास में मौर्यकालीन सभ्यता, संस्कृति, अर्थ-व्यवस्था, शासनव्यवस्था, कृषि, व्यापार, वाणिज्य, शिल्प, उद्योग आदि को काफी उन्नत अवस्था में बताया गया है। चाणक्य पर प्रभाव कौटिलीय अर्थशास्त्र भारतीय संस्कृति का बहुमूल्य दस्तावेज है। उसकी रचना नीतिकार चाणक्य ने की। चाणक्य सम्राट चन्द्रगुप्त के शिष्य थे और चन्द्रगुप्त भगवान महावीर के शिष्य। मौर्य साम्राज्य में चन्द्रगुप्त ने कुछ नई व्यवस्थाएँ दी थीं। महामात्य चाणक्य उन व्यवस्थाओं के सूत्रधार थे। चाणक्य ने अपने नीति-ग्रन्थों में धर्म और अर्थ दोनो को महत्व दिया। अर्थ की महत्ता उजागर करने वाले उनके कुछ नीति वाक्य दृष्टव्य हैं :1. सुख का मूल धर्म है। धर्म का मूल अर्थ है। अर्थ का मूल है राज्य और राज्य का मूल इन्द्रिय-जय है। इन्द्रियजय का मूल विनय और विनय का मूल सेवा है। 2. जब मनुष्य पर विपत्ति पड़ती है तब उसका बचाव धन से हो सकता है। इसलिए धन को बचाना उचित है। 3. चतुर मनुष्य को चाहिये कि जहाँ उसको जीविका नहीं हो; साहूकार, ज्ञानी, .. राजा, वैद्य और नदी नहीं हो, वहाँ कदापि न बसे। 4. जो संकट पड़ने पर सहायता करता है, दुर्भिक्ष के समय धन-धान्य से मदद करता है, उसे ही मित्र या भाई-बन्धु कह सकते हैं। 5. अच्छा भोजन, धन-दौलत, यश और दानशीलता - ये कठिन तपस्या, के . फलस्वरूप प्राप्त होते हैं। 6. वैश्यों का बल धन है। .. 7. जो उद्योगी पुरुष है, उनसे दरिद्रता दूर रहती है। 8. व्यापारियों के लिए कौनसी चीज दूर है? अर्थात् वे जहाँ अवसर हो, वहाँ धन .. कमाने के लिए चले जाते हैं। . 1. 'मेरी आमदनी और खर्च क्या है?' इसका विचार करना चाहिये। 10. आलस्य से विद्या का नाश होता है, पराये हाथ में जाने से धन का नाश होता है। 11. धन से धर्म की रक्षा होती है। दान से दरिद्रता का नाश होता है। दान धर्म है . . और कोष के अनुसार दान करना चाहिये। (317)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy