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________________ 3. स्त्री-पुरुष असमानता और 4. सामाजिक असमानता पर करारी चोट करती है। चारों ही बिन्दु अर्थशास्त्र में सदैव विमर्शनीय रहे हैं। समता का साम्राज्य कैवल्य प्राप्ति के साथ ही भ. महावीर का तीर्थंकरत्व प्रकट हो गया। समवसरण में उनकी देशनाएँ सुनने के लिए मानव ही नहीं, देवगण और पशु-पक्षी भी उपस्थित होते थे। समवसरण समता और समानता, प्रकृति और पर्यावरण, अभय और मैत्री के जीवन्त रूप होते थे। कैवल्य प्राप्ति के दूसरे ही दिन उन्होंने द्रव्य-यज्ञ और कर्मकाण्ड की विषमतामूलक व्यवस्था को अपने समता के विराट साम्राज्य में बुलाकर उसे भी समवसरण के परम समतामय वातावरण में समाहित कर लिया थ। उन्होंने समाज में उपेक्षित वर्गों के व्यक्तियों को भी अपने धर्म-संघ में दीक्षित किया और परमेष्ठी पद पर आरूढ़ किया। गृहस्थ-धर्म में भी सभी वर्णो, वर्गो, गोलों और जातियों के व्यक्तियों को समान स्थान मिला। उनके संघ में अभिवादन का आधार चारित्र (दीक्षा-पर्याय) है; उम्र, जाति या सांसारिक पद नहीं। तत्कालीन समाज में ये घटनाएँ क्रान्तिकारी थीं। जनभाषा का प्रयोग उस समय कुछ लोगों द्वारा किसी भाषा विशेष को महत्व देकर कुछ लोगों का अनावश्यक शोषण किया जा रहा था। इस कारण से समाज का एक भाग शास्त्रज्ञान और अध्ययन से वंचित था। महिलाओं को भी आगे बढ़ने की स्वतन्त्रता नहीं थी। तत्कालीन जन-बोली/जन-भाषा प्राकृत में भगवान महावीर ने उपदेश देकर जन-जन में ज्ञान-विज्ञान और सदाचार की नव-चेतना जगाई। उन्होंने जनता के सांस्कृतिक उत्थान के लिए प्राकृत भाषा का उपयोग अपने उपदेशों में किया। पिछली सदी से देश में भाषा एक बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। भाषा के साथ धर्म, संस्कृति, परम्परा, व्यवसाय, रोजगार जैसी अनेक बातें जुड़ी हैं। जन भाषा के प्रयोग के माध्यम से भगवान महावीर लोक-संस्कृति को प्रतिष्ठित करते हैं साथ ही लोक में संस्कृति व संस्कारों की सरिता भी प्रवाहित करते हैं। जनभाषा के माध्यम से उन्होंने ऐसी जनता को शिक्षित, समझदार, योग्य व समर्थ बनाया, जिसे आम तौर पर नासमझ, अशिक्षित और मूढ़ समझा जाता था। आमजन का आत्म• सम्मान भी प्राकृत की प्रतिष्ठा से बढ़ गया था। मानवीय एकता, सामाजिक समता . और सर्वांगीण उन्नति की दिशा में उनकी भाषा क्रान्ति का ऐतिहासिक योगदान है। (305)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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