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________________ कष्टों के निवारणार्थ वह उनकी सेवा में रहना चाहता है। भगवान समाधान करते हुए कहते हैं कि परावलम्बी होकर लक्ष्य प्राप्ति सम्भव नहीं है। आचारांग सूत्र में भगवान महावीर के लिए कहा गया है कि वे कष्टों से बचने के लिए किसी की शरण में नहीं जाते थे - गच्छइ णायपुत्ते असरणाए। उनका मत था कि दूसरों की शरण में रहकर अपने आप को नहीं पाया जा सकता। जीवन के समरांगण में आगे बढ़ने वालों के लिए स्वावलम्बन मुख्य शर्त है। बेरोजगारी घटाने और उद्यमिता बढाने के लिए स्वावलम्बन और आत्म-निर्भरता स्वर्ण-सूत्र है। . आजीविका को चोट नहीं पहुँचाना _ विहार करते हुए भगवान मोराक सन्निवेश पहुँचे। उनकी उत्कृष्ट साधना और अपूर्व तेजस्विता के समक्ष जनता श्रद्धाभिभूत थी। लोग आते और भगवान को वन्दना कर लौट जाते। इस सन्निवेश में अच्छन्दक जाति के ज्योतिषी रहते थे। ज्योतिष के आधार पर उनकी जीविका चलती थी। भगवान के सहज रूप से बढ़ते प्रभाव से अच्छन्दकों का प्रभाव क्षीण होने के साथ ही उनकी जीविका पर भी इसका विपरीत असर हुआ। इस पर अच्छन्दक ज्येतिषियों ने भगवान से निवेदन किया - 'भगवन्! आपका व्यक्तित्व अपूर्व है, आप अन्यत्र पधारें, क्यों कि आपके यहाँ बिराजने से हमारी जीविका नहीं चलती है।' भगवान महावीर बिना विलम्ब किये वहाँ से विहार करके आगे बढ़ जाते हैं। भगवान की अहिंसा और करुणा इतनी गहरी थी कि किसी की आजीविका में तनिक व्यवधान भी उनके लिए असम्भव था। यह घटना व्यक्ति को कई प्रेरणाएँ देती हैं। आर्थिक जगत में गला-काट अस्वस्थ स्पर्धा से बचना, किसी की आजीविका में बाधक नहीं बनना और किसी की आजीविका व रोजगार में सहयोग करना / बढ़ते आर्थिक उपनिवेशवाद को रोकने के लिए भी यह घटना अत्यन्त प्रेरक है। नारी उद्धार चन्दनबाला का उद्धार भगवान महावीर के साधना-काल की सुप्रसिद्ध घटना है। राजघराने और अनेक सम्पन्न श्रेष्ठी देखते रह गये और तीर्थंकर महावीर एक दुखियारी के द्वार पर पहुँच जाते हैं। छ:मासी उपवास के पारणे में अत्यन्त मामूली चीज उड़द के बाकुले ग्रहण करके उन्होंने सबको अचम्भित कर दिया। तत्कालीन साम्राज्यवादी लिप्सा के परिणाम स्वरूप राजकुमारी चन्दनबाला का दासी की तरह विक्रय हुआ था।" यह घटना 1. साम्राज्यवाद, 2. दास-दासी प्रथा, (304)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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