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________________ परिच्छेद पाँच अहिंसा के अर्थशास्त्र के आयाम अहिंसा की आधारशिला अहिंसा का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना मानव जाति का। इतिहास के क्षितिज के पार भी अहिंसा का वैभव बिखरा पड़ा है। प्राग-आर्य सभ्यता तो अहिंसा, सत्य और त्याग पर ही आधारित थी। यहाँ तक उस संस्कृति में पले-पूसे लोग अपने सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक हितों के संरक्षण के लिए भी युद्ध करना पसन्द नहीं करते थे। अहिंसा उनके जीवन व्यवहार का प्रमुख अंग थी। भौतिक विकास की दिशा में भी वे लोग प्रगति के शिखर पर थे। उनके आवास, ग्राम, नगर आदि बहुत सुव्यवस्थित थे। हाथी-घोड़ो की सवारी के अलावा उनके पास गमनागमन के यान भी थे। इतिहास के सिंहावलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि आर्यों के आगमन से पूर्व अहिंसा धर्म इस देश में व्यापक था और राजपरिवारों द्वारा भी वह समादृत था। सम्भव तो यह भी है कि वह बहुत सारे भागों में राज-धर्म भी थान निःसन्देह, अहिंसा अर्थशास्त्र सहित सारी व्यवस्थाओं की धुरी थी। ... प्राचीनतम ग्रन्थ आचारांग सूत्र में अहिंसा को शाश्वत और नित्य बताया गया है। आगम ग्रन्थों में अहिंसा की अनेक परिभाषाएँ और व्याख्याएँ मिलती हैं। दशवैकालिक सूत्र में प्राणी-मात्र के प्रति संयम को अहिंसा कहा गया है। यह भयभीत प्राणियों के लिए शरणभूत, पक्षियों के लिए आकाश में मुक्त-विहार के समान, प्यासों के लिए जल के समान, भूखों के लिए भोजन के समान, समुद्र के बीच डूबते हुओं के लिए जहाज के समान, पशुओं के लिए आश्रय-स्थान के समान, रोगियों के लिए औषधि के समान और भयानक जंगल में सहयोगियों के समान है। इतना ही नहीं, यह अहिंसा अत्यन्त विशिष्ट है। यह त्रस और स्थावर सभी प्राणियों का कुशल-मंगल करने वाली है। आचार्य शिवार्य कहते हैं कि अहिंसा सब आश्रमों का हृदय है तथा सभी शास्त्रों का गर्भ (उत्पत्ति स्थान) है। यहाँ आश्रम शब्द बड़ा अर्थपूर्ण है। इसके अन्तर्गत वाणिज्य और उद्योग सहित श्रमाधारित व श्रम को प्रतिष्ठित करने वाले सभी निकायों को समाविष्ट किया जा सकता है। सभी प्रकार के उपक्रमों में पराक्रम (श्रम) और पराक्रम के साथ (281)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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