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________________ 5. पद्म लेश्या (शुभतर मनोभाव) : इस लेश्या में व्यक्ति पिछली लेश्या से और अधिक पवित्र हो जाता है। भगवान महावीर ने पद्म लेश्या वाले को मितभाषी, प्रशान्त और जितेन्द्रिय बताया है। इस लेश्या वाला आत्म-साधना में आगे बढ़ जाता है। 6. शुक लेश्या (परम शुभ या शुभतम मनोभाव) : इस लेश्या वाला व्यक्ति आत्माभावों में रमण करने वाला होता है। वह अपने निमित्त से दूसरों को तनिक भी आहत नहीं करता है। सांसारिक इच्छाएँ उसके लिए कोई मायने नहीं रखती हैं। प्रज्ञापना के लेश्या पद में बताया गया है कि अशुभ लेश्याओं वाला मानव अल्पऋद्धि वाला होता है और शुभ लेश्याओं वाला व्यक्ति महा-ऋद्धि वाला होता है। यहाँ जिस ऋद्धि की चर्चा है, वह शुकू लेश्या की दुष्टि से आत्म-ऋद्धि है। परन्तु अन्य लेश्याओं की दृष्टि से अल्प-महाऋद्धि का सम्बन्ध बाहरी और आन्तरिक दोनों से हैं। स्पष्ट है कि अशुभ लेश्याओं वाला व्यक्ति भौतिक जीवन में भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता है। अगर वह करता भी है तो उसकी सफलता में समाज का अर्थशास्त्र असफल हो जयेगा यानि अर्थशास्त्र अपने सर्वोदय के उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पायेगा। सभी प्राणी महाऋद्धि वाले बनें, यही लेश्या-सिद्धान्त की प्रेरणा है। (269)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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