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________________ धर्म है जो सरकारी प्रयासों को पूरकता प्रदान करता है। करारोपण पर सरकार की अधिक निर्भरता करदाता को करवंचना हेतु प्रेरित करती है। जैन आगमों में स्याद्वाद अथवा अनेकान्त का काफी अधिक वर्णन मिलता है। आज की विषम व्यावसायिक परिस्थितियों में प्रबन्धक के लिए निर्णय लेना अत्यधिक कठिन होता है। यदि वह पूर्वाग्रह से ग्रसित हो तो प्रत्येक कदम पर इसके समक्ष समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। इसके विपरीत यदि वह अनेकान्त : के अनुरूप वित्त, विणन, कार्मिक, उत्पादन आदि विषयक निर्णय लेने का प्रयास करता है तो उसे एक सौहार्दपूर्ण लेने का प्रयास करता संक्षेप में, जैन आगमों में प्रयुक्त सिद्धान्त की प्रबन्धन के क्षेत्र में पर्याप्त उपादेयता हो सकती है। समीष्टगत स्तर पर नीतियां बनाते समय भी अनेकान्त एक प्रभावी उपादान बन सकता है। जैन आगमों में स्पष्ट किया गया है अहिंसा से बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है। विश्व बैंक की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्टों में बतलाया गया है कि जहां समूह देश घातक हथियारों का उत्पादन करते हैं, भारत, पाकिस्तार, बांग्लादेश चीन और अफ्रीका के अनेक देश अपनी-अपनी आय का बड़ा भाग इन हथियारों की खरीद पर व्यय कर रहे हैं। जहां प्रभू महावीर द्वारा प्रदत्त निम्न तीन सूत्रों का इससे उल्लघंन हो रहा है, वहीं इनसे विभिन्न देशों के बीच युद्ध का खतरा बना रहता है। ये सूत्र हैं: 1. अहिंसप्पयाणे : हिसंक शस्त्रों का उत्पादन नहीं करना। 2. असंजुत्ताकरणे : हथियारों का संयोजन नहीं करना। 3. अपावकम्मोवदेसे : हिंसा की शिक्षा नहीं देना। कुल मिलाकर जहां अनेक विकासशील देश पड़ोसी देशों से अपनी रक्षा के नाम पर हथियार खरीद रहे हैं, वहीं उनके आर्थिक विकास की गति पर इससे प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है। यही राशि शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोजगार पर खर्च की जाए तो इन देशों की गरीबी को दूर किया जा सकेगा। यह भय तथा हिंसा का माहौल दूर करना जरूरी हैं। प्रस्तुत शोधग्रन्थ कुल मिलाकर जैन आगमों में वर्णित आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था का अच्छा संकलन है। मेरी मान्यता है कि जिन व्यक्तियों के मानस पटल पर जैन आगमों का केवल आध्यात्मिक पक्ष अंकित है उन्हें इस ग्रंथ का (xxvi)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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