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________________ नाश में विवेकपूर्ण विभाजन होना चाहिए। इसके विपरीत आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने बतलाया कि धन में संवृद्धि में एक महत्वपूर्ण घटक लाभ है। पूरे विश्व में बढ़ती हुई गरीबी, हिंसा तथा श्रमअसंतोष की पृष्ठभूमि में एक बड़ा कारण यही है कि उद्योगपति किसी भी प्रकार से लाभ में वृद्धि करना चाहते हैं। नोबल पुरस्कार विजेता साइमन कुज़नेट्स ने आर्थिक विकास के संकेतक . इस रूप में बतलाए : (i) कृषि का कुल आय में अनुपात निरन्तर कम होना चाहिए, (ii) उद्योगों का आय में अनुपार निरन्तर बढ़ना चाहिए, तथा (iii) सुखी व सम्पन्न जीवन हेतु सेवा क्षेत्र का तेजी से विस्तार होना चाहिए। परन्तु जैसा कि हम जानते हैं, कृषि की निरन्तर उपेक्षा के फलस्वरूप आज विश्व के. 90 प्रतिशत देशों में जनसंख्या की अपेक्षा खाद्य वस्तुओं के उत्पादन की वृद्धि दर कम हो गई है और इससे खाद्य सुरक्षा (Food Security) कम होने लगी है। इसके साथ ही द्रुतगति से बढ़ते हुए औद्योगिक उत्पादन एवं सेवा क्षेत्र (परिवहन, विद्युत आदि) के विस्तार से भूमंडलीय पर्यावरण प्रदूषित हो गया है। जैन आगमों में अर्थ की उत्पत्ति में कृषि को अधिक महत्व दिया। इसके साथ ही आर्थिक साम्राज्यवाद पर अंकुश हेतु अपरिग्रह पर बल दिया गया। आज के कार्पोरेट जगत में जो उद्योगपति जितने विशाल साम्राज्य का स्वामी है, वही समाज के लिए मॉडल बन जाता है परन्तु जैन आगमों में बार-बार पारस्परिक निर्भरता का संदेश 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' प्रतिध्वनित होता है जिसके अन्तर्गत निवेश महत्वपूर्ण तो है, परन्तु सामाजिक समरसता एवं सह-अस्तित्व भी उतने ही अनिवार्य हैं। अर्थशास्त्र की परिभाषा देते हुए जहां आधुनिक (यूरोपीय व अमरीकी) विद्वान अर्थ या धन को केन्द्र में रखते हैं, तथा अदनुसार आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उत्पादन में वृद्धि (आर्थिक संवृद्धि) पर बल देते हैं, वहीं एक भारतीय अर्थशास्त्री- प्रो० जे० के० मेहता- इस बात को जोर देकर कहते हैं कि आवश्यकताओं को सीमित करना ही अर्थशास्त्र की विषय वस्तु होना चाहिए। तार्किक दृष्टि से यह उपयुक्त भी है। जिस गति से आज विश्वभर में पानी, खनिजों, (xxiv)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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