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________________ अलावा देशावकाशिक व्रत के तहत श्रावक श्राविकाओं का कर्तव्य बनता है कि वे निम्न चौदह नियम नित्य विचारें और यथाशक्ति ग्रहण करें - 1. सचित्त : श्रावक प्रतिदिन कच्चा जल, अन्न, फल, फूल, बीज आदि जिन वस्तुओं का उपयोग करता है, उनकी मर्यादा निश्चित करें। यह मर्यादा संख्या, . माप, तौल आदि के रूप में हो सकती है। कच्चे फल, फूल, पत्तियाँ नहीं तोड़ना भी समाविष्ट है। 2. द्रव्य : रोटी, दाल, भात, सब्जी, आचार, चटनी आदि खाने पीने सम्बन्धी वस्तुओं की संख्या निश्चित करना। जैसे भोजन में इतने द्रव्य से ज्यादा सेवन नहीं करूँगा। सामूहिक भोजों में यह मर्यादा इस रूप में तय होनी चाहिये कि मेजबान इतने द्रव्य (आइटम) से अधिक नहीं बनाएगा। इससे अपव्यय रुकता है और आमंत्रित व्यक्ति बेमेल चीजें खाने से बच जाते हैं। 3. विगय : विगय प्राकृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है - विकृति। जिनके अमर्यादित सेवन से विकार उत्पन्न हो ऐसे मक्खन, घी, तेल, दूध, दही आदि की मर्यादा करना। यह स्वास्थ्य रक्षण का सूत्र भी है। 4. पण्णी : पैरों में पहनी जाने वाली वस्तुओं (जूते, चप्पल, मोजें आदि) की मर्यादा करना / जीवित पशु से प्राप्त चमड़े के जूतों का त्याग करना। 5. ताम्बूल : मुखवास, पान, सुपारी आदि की मर्यादा करना। तम्बाखयुक्त - नशीले मुखवास-द्रव्यों का त्याग करना। 6. वस्त्र : प्रतिदिन पहने व ओढ़े जाने वाले वस्त्रों की मर्यादा करना। वस्त्रों को भड़काऊ तरीके से नहीं पहनना। शालीन परिधान धारण करना। 7. कुसुम : फूल, इत्र, सुगंधित द्रव्यों, शृंगार-सामग्री आदि की मर्यादा करना। 8. वाहन : प्रतिदिन उपयोग में लिये जाने वाले वाहनों के प्रयोग एवं उनकी संख्या निर्धारित करना। 1. शयन : शयन, शयन-स्थान, पलंग, खाट, बिस्तर आदि की मर्यादा करना। 10. विलेपन : तेल, क्रीम, उबटन आदि विलेपनीय वस्तुओं की मर्यादा करना। 11. ब्रह्मचर्य : मैथुन-सेवन की मर्यादा या त्याग करना। कामोत्तेजक साहित्य, टीवी कार्यक्रम या प्रसंगों से बचना। (202)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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