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________________ देता है। इसका पर्यावरण पर असर होता है। व्याख्या-ग्रन्थों में खान खोदने, शिला तोड़ने आदि को स्फोट-कर्म कहा है। असावधानी से करने पर ये कार्य मानव, जीव-जन्तुओं व प्रकृति के लिए भारी नुकसानप्रद सिद्ध होते हैं। सम्भव है, निर्धारित मानदण्डों का ध्यान रखे बगैर किये जाने पर ही इन्हें कर्मादान माना गया हो। वर्तमान में विभिन्न प्रकार की मनोरंजनात्मक स्फोटकवस्तुएँ (पटाखे आदि), अन्य छोटे-बड़े विस्फोटकों/बमों से लेकर सर्व विनाशक अणु-बमों का निर्माण व व्यवसाय किया जाता है। वे सब इस कर्मादान के अन्तर्गत माने जायेंगे। आतिशबाजी से देश के करोड़ों रुपयों का धुआँ हो जाता है। आतंकियों द्वारा किये जाने वाले बम विस्फोटों से अनगिन निर्दोष व्यक्ति अपनी जान गँवा देते हैं और करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है। अणु बम के बारे में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं। 6 व 9 अगस्त, 1945 को हुई हिरोशिमा और नागासाकी की विनाश-लीला विश्व-इतिहास के सर्वाधिक काले दिनों में से एक है। 6. दन्त-वाणिज्य (दंतवाणिज्जे): नाम के अर्थ में इस कर्मादान के अन्तर्गत हाथी दाँत का व्यापार आता है। सुन्दर और बहुमूल्य दाँतों के लिए संसार के हाथियों पर इंसान ने बहुत अत्याचार किये हैं। उपलक्षण से इस कर्मादान के अन्तर्गत उन सभी प्रकार के पशु-उत्पादों को लिया जाता हैं, जिनके लिए पशु-पक्षियों का वध किया जाता है। इन उत्पादों में चर्म, हड्डी, नाखून, सींग, पंख, कस्तूरी आदि गिनाये जा सकते हैं। व्यावसायिक लाभों के लिए मानव ने मूक प्रणियों पर बेहिसाब जुल्म ढाये। भगवान महावीर के उपदेशों के प्रभाव से उनके अनुयायियों ने वन्य जीवों और अन्य जीवों की रक्षा के लिए हर युग में युगान्तरकारी कार्य किये। उससे संसार अधिक सुन्दर, बेहतर और रहने योग्य रह सका। 7. लाख-वाणिज्य (लक्खवाणिज्जे): श्री हेमचन्द्राचार्य इसके अन्तर्गत लाख, चपड़ी, मैनसिल, नील, धातकी के फूल, छाल आदि के व्यापार को परिगणित करते हैं। जिन वानस्पतिक उत्पादों के साथ प्रत्यक्ष रूप से त्रस जीवों की हिंसा जुड़ी हो, वे सारे लाख वाणिज्य मानने चाहिये। कुछ प्रकार के व्यापारों से वनस्पतियों की कुछ प्रजातियों पर अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाता है। उनका निषेध भी यहाँ माना जा सकता है। (193)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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