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________________ और जीविकोपार्जन में सह-सम्बन्ध होता है। इस दृष्टि से इस व्रत के अन्तर्गत व्रती श्रावक के लिए निषिद्ध व्यवसायों की सूची दी गई है। वह ऐसे व्यवसाय नहीं करें जिससे समाज, संस्कृति, पर्यावरण और अर्थतन्त्र पर विपरीत असर पड़े। ऐसे / पन्द्रह धन्धों को पन्द्रह कर्मादान के रूप में जाना जाता है।" उपासकदशांग और आवश्यकसूत्र में 15 कर्मादानों के नामों की सूची मिलती है। जबकि गृहस्थाचार के अन्य ग्रन्थों में उनकी व्याख्याएँ भी मिलती हैं। पन्द्रह कर्मादान, जो श्रावक के लिए निषिद्ध हैं, निम्न हैं - 1. अंगार कर्म (इंगालकम्मे ) : कोयले का धन्धा करने के लिए हरे-भरे वक्षों / को काटना और जंगलों को नष्ट करना इस कर्मादान के अन्तर्गत आता है। प्रो. सागरमल जैन ने इसमें कुम्हार, लुहार, सुनार, हलवाई, भड़भूजा आदि को परिगणित करने से इन्कार किया है। उपासकदशांग में सकडालपुत्र कुम्हार को 12 व्रतधारी श्रावक बताया गया है। 2. वन कर्म (वणकम्मे) : हरे-भरे जंगलों को नुकसान पहुँचाकर अपना व्यवसाय करना। लकड़ी और अन्य उन वन्य चीजों का व्यवसाय करना, जिससे जंगलों के प्राकृतिक स्वरूप को नुकसान पहुँचता है। 3. शकट-कर्म (साडी कम्मे ) : शटक का अर्थ बैलगाडी, गाडी, वाहन आदि होता है। उनके निर्माण और बिक्री के धन्धे को शटक कर्म कहा है। आचार्य हेमचन्द्र मूल प्राकृत शब्द 'साडीकम्मे' का अर्थ वस्तुओं को सड़ाकर नई चीज बनाना, बेचना करते हैं। जैसे मदिरा-व्यवसाय। प्रो. सागरमल जैन इस दूसरे अर्थ को उचित मानते हैं। 4. भाटक-कर्म (भाडीकम्मे) : बैल, अश्व, ऊँट, खच्चर आदि पशु तथा इनसे चलने वाली गाड़ियों को भाड़े पर देने के धन्धे को भाटक-कर्म बताया गया है। भाड़े पर लेने वाले व्यक्ति इन मूक प्राणियों पर भार ढोने, हाँकने आदि में ज्यादतियाँ कर लेते हैं, इसीलिए इस कर्म को निषिद्ध बताया है। वर्तमान में अधिकांश वाहन पेट्रोलियम (पेट्रोल/डीजल) से चलते हैं। शटक व भाटक कर्म के निषेध में वाहनों के कम और विवेकसम्मत उपयोग की प्रेरणा है। पर्यावरण-संरक्षण की दृष्टि से इसकी आज बहुत उपयोगिता है। 5. स्फोट-कर्म ( फोडीकम्मे ) : ऐसे काम-धन्धे जिनमें विस्फोट करना पड़े, स्फोटक कर्म है। विस्फोट का धमाका प्रकृति को तीव्र रूप से प्रकम्पित कर (192)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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