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________________ योग्य है। उदाहरण के तौर पर श्रावक खेती बाड़ी करता है, उसमें त्रस जीवों की हिंसा भी हो जाती है। परन्तु, उसमें उन जीवों की हिंसा का इरादा नहीं है, इसलिए वह क्षम्य है। विरोधिनी हिंसा : श्रावक के लिए अनाक्रमण मुख्य बात है। लेकिन यदि कोई हमला करता है तो उसका प्रतिकार अवश्यंभावी हो जाता है। आत्म-रक्षा तथा परिवार, समाज और देश की रक्षा के लिए व्रती को शस्त्र भी उठाना पड़ सकता है। इससे उसका व्रत टूटता नहीं है। अन्यायी और आक्रमणकारी के प्रति की गई हिंसा से गृहस्थ का अहिंसा व्रत खण्डित नहीं होता। निशीथ चूर्णि में तो यहाँ तक कहा गया है कि ऐसी अवस्था में गृहस्थ तो क्या साधु का व्रत भी खण्डित नहीं होता है। इतना ही नहीं, अन्याय का प्रतिकार नहीं करने वाले साधक को दण्ड का भागी भी बताया गया है। ग्रन्थों में महाराजा चेटक और मगध सम्राट अजातशत्रु (कूणिक) के युद्ध को अन्याय के प्रतिकार स्वरूप युद्ध माना गया। इस सम्बन्ध में विज्ञों ने महाराजा चेटक को विराधक नहीं माना! उस महासंग्राम में जिस तरह से भीषण नरसंहार हुआ, वह अपने आप में अन्यायपूर्ण था। अन्याय से अन्याय का प्रतिकार कैसे हो : सकता है? __इस प्रकार श्रावक के अहिंसा अणुव्रत में अकारण अथवा बिना किसी को कष्ट दिये जीवन को सजाने संवारने के पूरे अवसर विद्यमान हैं। इस अणुव्रत के पाँच अतिचार निम्न है' - 1. बन्ध : आगम युग में पशुपालन मुख्य व्यवसाय था। जो पशु मानव के जीविकोपार्जन का मुख्य साधन हो, उनकी समुचित देखभाल की जानी चाहिये। उन्हें कठोर बन्धन से बांधना, पिंजरों में कैद करना आदि अहिंसा व्रती के लिए अतिचार है। अधीनस्थ कर्मचारियों को निश्चित समयावधि से अधिक समय तक रोक कर कार्य करवाने को भी बन्ध अतिचार के अन्तर्गत माना गया है। इस अतिचार से श्रमिकों और दास-दासियों के शोषण के विरुद्ध माहौल बना। यदि उनसे अधिक काम करवाना है तो उन्हें अधिक पारिश्रमिक दिया जाय। वर्तमान के श्रम कानून में अधिसमय (ओवर टाइम) के प्रावधानों को इस अतिचार के सम्बन्ध में देखा जाना चाहिये। 2. बध : इसके अन्तर्गत पीटना, ताडना देना, घातक प्रहार करना आदि को . अतिचार बताया गया है। मवेशियों व पशुओं पर घातक प्रहार नहीं करने (177)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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