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________________ चम्पा केन्द्रों के अध्ययन से तत्कालीन व्यावसायिक-उन्नति का पता चलता है। भगवती सूत्र में सोलह महाजनपदों का उल्लेख है - अंग, बंग, मगध, मलय, अच्छ, वच्छ, कोच्छ, पाढ़, लाढ़, वज, मोलि, काशी, कोसल, अवध और संभूत्तरा।" बृहत्कल्पसूत्र में साधु-साध्वियों के लिए साकेत के पूर्व में अंग-मगध तक, दक्षिण में कौशाम्बी तक, पश्चिम में स्थूणा (स्थानेश्वर) तक और उत्तर में कुणाला (श्रावस्ती जनपद) तक विहार कर सकने की बात कही गई है तथा इतने ही क्षेत्र को आर्य क्षेत्र बताया गया है। निस्संदेह, इन क्षेत्रों में व्यवसाय और वाणिज्य भी उन्नति पर था। पर धीरे-धीरे आर्य क्षेत्रों का विस्तार होता गया। राजा सम्प्रति (220-211 ई. पू.) के समय में साढ़े पच्चीस देशों को आर्य क्षेत्र माना जाने लगा था। ये साढ़े पच्चीस जनपद और उनकी राजधानियाँ निम्न हैं:जनपद राजधानी मगध राजगृह अंग ताम्रलिप्त कलिंग कांचनपुर काशी वाराणसी साकेत कुरू सोरिय पांचाल कौपिल्यपुर जांगल अहिच्छता सौराष्ट्र विदेह मिथिला वत्स कौशाम्बी शांडिल्य नन्दिपुर मलय भद्रिलपुर बंग कोशल गजपुर कुशार्त द्वारवती मत्स्य वैराट वरणा दशार्ण अच्छा मृत्तिकावती (148)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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