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________________ में उनकी भूमिका रेखांकनीय है। ज्ञाताधर्मकथांग में द्वारकानगरी की थावच्चा नामक सार्थवाही महिला के बारे में बताया गया कि वह राजकीय व्यवहार और व्यापार में निष्णात थी। रोहिणी का व्यक्तित्व भी उद्यमशीलता का परिचायक था। इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिकदशा में उल्लेख है कि काकन्दी नगरी की भद्रा सार्थवाही के पास प्रचुर धन-सम्पत्ति थी। वह माल लेकर विदेश जाती थी और व्यवसाय करती थी। उसने अपने इकलौते बेटे के लिए बत्तीस भवन बनवाये थे। पता चलता है कि भगवान महावीर के अनुयायी वर्ग में महिला उद्यमियों को प्रतिष्ठापूर्ण स्थान प्राप्त था। साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि उद्यम करने वाली नारियाँ अपने पारिवारिक दायित्वों को भी निष्ठा से निभाती थी। व्यापारिक संगठन ___ व्यापारी और व्यवसायी अपने व्यापारिक हितों की रक्षार्थ संगठन भी बनाते थे। भागीदारी और संयुक्त श्रम-पूंजी से व्यवसाय के अलावा इन संगठनों की एक सामाजिक व्यावसायिक पहचान और प्रतिष्ठा थी। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार भरत चक्रवर्ती ने 18 प्रकार की व्यापारिक श्रेणियों-प्रश्रेणियों को चक्ररत्न की पूजा करने के लिए बुलवाया।" इन श्रेणियों में कुम्भार, पट्टइल्ल, सुवण्णकार, सूवकार, गन्धल, कासवग, मालाकार, कच्छकार और तम्बोलिक नाम के नौ नारू तथा चर्मकार, यंत्रपीलनक, गंदिय, छिपांय, कंसकार, सीवग, गुआर, भिल्ल और धीवर ये नौ कारू के नाम गिनाये गये है। आगमों में सुवर्णकार, चित्रकार और : रजक की श्रेणियों (संगठनों) का उल्लेख है।" ये श्रेणियाँ अपने व्यवसाय और सदस्यों के हित में कार्यरत थीं। जब मल्लिकुमारी के पाँव के अंगुठे को देखकर एक चित्रकार ने मल्लिकुमारी का आकर्षक चित्र बना दिया तो मल्लदिन्न ने बुरा मान लिया और उस चित्रकार को देशनिकाला अथवा मृत्युदण्ड का आदेश दे दिया। ऐसा सुनकर चित्रकारों की श्रेणी राजकुमार के पास पहुँची और अपना पक्ष रखा। राजकुमार मल्लदिन्न ने चित्रकार को क्षमा कर दिया। इसी प्रकार अन्य व्यापारों के भी संगठन थे। जिनमें जाति और धर्म गौण और व्यापार मुख्य था। राजा को भी इन संगठनों की बात माननी पड़ती थी। वर्तमान में भी इस प्रकार के संगठन होते हैं। व्यापार-केन्द्र व्यवसाय और उद्योग के विस्तार के साथ-साथ बड़े-बड़े व्यावसायिक स्थल और केन्द्र भी उस समय अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते थे। ऐसे स्थलों और (147)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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