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________________ * भाषा और आजीविका - यहाँ पर भाषा आर्य की चर्चा करना भी इसलिए समीचीन होगा कि कार्य और शिल्पार्य की भाँति भाषा भी आजीविका का माध्यम रही होगी। जैसा कि आज भी होता है। अर्धमागधी जानने वालों को भाषार्य कहा गया है। भाषाआर्य का आर्थिक पक्ष यह है कि प्रथम तो अर्धमागधी उस समय की जन भाषा थी। व्यवसाय और वाणिज्य की अभिवृद्धि के लिए लोक भाषा या लोकप्रिय भाषा का सहारा लिया जाता है। जिससे विपणन सुगमता से हो सके। दूसरा, उस भाषा के अध्ययन-अध्यापन से भी आजीविका जुड़ी होती है। तीसरा, भगवान महावीर ने अपने उपदेश उस भाषा में देकर उसे अत्यन्त गरिमामय स्थान पर प्रतिष्ठित कर दिया था। अर्धमागधी का लेख-विधान 18 प्रकार का बतलाया गया है। वह है - ब्राह्मी, यवनानी, दोशापुरिका, खरौष्ट्री, पुष्करसारिका, भोगवतिका, प्रहरादिका, अन्ताक्षरिका, अक्षरपुष्टिका, वैनायिका, निहविका, अंक लिपि, गणित लिपि, गन्धर्व लिपि, आदर्श लिपि, माहेश्वरी, तामिली, द्राविड़ी और पौलिन्दी। - इस प्रकार हम देखते हैं कि वाय, वाणिज्य और उद्योग धंधे सभी प्रकार के थे, पर श्रेष्ठ, उत्तम, अहिंसक और अल्पहिंसक व्यवसाय करने वाले कर्मार्य और शिल्पार्य कहे गये हैं। इससे अर्थोपार्जन में एक विवेक दृष्टि परिलक्षित होती है। (139)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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