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________________ कर्म आर्य के जो भेद मूल पाठ में बतलाये गये हैं. वर्तमान सन्दों में नितान्त अपर्याप्त है। परन्तु मूल पाठ में ही आगे कहा गया है कि "ये यावण्णे . तहप्पगारा।" अर्थात् अन्य जितने भी आर्य कर्म वाले हो, उन सबको कार्य समझना चाहिये। शिल्प-आर्य अगले सूत्र में शिल्पार्यों की चर्चा है। शिल्पार्य की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि - जो शिल्प अहिंसा आदि धर्मांगों से तथा शिष्ट जनों के आचार के अनुकूल हो, वह आर्य शिल्प कहलाता है। ऐसे आर्य शिल्प से जीवन-निर्वाह करने वाले शिल्पार्यों में परिगणित किये गये हैं। शिल्पार्यों के अन्तर्गत - तुण्णागा (तुन्नाग, रफ्फूगर, दर्जी), तन्तुवाया (तन्तुवाय, जुलाहे), पट्टगारा (पट्टकार, पटवा), देयड़ा (द्रतिकार, चमड़े की मशक बनाने वाले), वरणा (वरण या वरूट्ट), पिच्छिया (पिच्छिक, पिंछी बनाने वाले), छब्बिया (छविक, चटाई आदि बनाने वाले), कट्ठपाउयारा (काष्ठपादकाकार। लकड़ी की खड़ाऊ बनाने वाले), मुंजपाउयारा (मुंज की खड़ाऊ बनाने वाले), छत्तारा (छत्रकार/छत्ते बनाने वाले), वज्झारा (वजार, वाह्यकार, वाहन बनाने वाले अथवा बहकार - मोर पिच्छी बनाने वाले), पोत्थारा (पुच्छकार-पूँछ के बालों से झाडू बनाने वाले; पुस्तकार, जिल्दसाज या मिट्टी के पुतले बनाने वाले), लेप्पारा (लेप्यकार - लिपाई-पुताई करने वाले या मिट्टी के खिलौने बनाने वाले, चित्तारा (चित्रकार), संखारा (शंखकार), दन्तारा (दन्तकार - दाँत बनाने वाले या दांती), भण्डारा (भाण्डकार - विविध बर्तन बनाने वाले), जिज्झगारा (जिह्वाकार - नकली जीभ बनाने वाले), सेल्लगारा (सिलावट, पत्थर शिल्पी), कोडिगारा (कोड़ीकार - कोड़ियों की माला आदि बनाने वाले), आदि परिगणित किये गये हैं। अन्य सभी आर्य शिल्पकार भी शिल्प आर्य के अन्तर्गत समाविष्ट माने जाएंगे। कर्मार्य और शिल्पार्य के उपर्युक्त भेदों के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि उस समय कोई कार्य छोटा या बड़ा (निम्न या उच्च) नहीं होता था, अपितु अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित, हिंसक या अहिंसक होता था। संभवतः इसी आधार पर ही मनुष्यों का वर्गीकरण भी आर्य और म्लेच्छ किया होगा, क्यों कि भगवान महावीर ने कर्म को प्रधान माना है, जन्म और वर्ण को नहीं। (138)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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