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________________ अथवा घर के ऊपर बने कोठों में रखा जाता था। इन कोठों अथवा घड़ों को मिट्टी और गोबर से लीप-पोतकर बन्द कर दिया जाता था और ऊपर पहचान के लिए मुहर भी लगाई जाती थी। भण्डारण इतना वैज्ञानिक था कि धान्य की अंकुरणशक्ति वर्षों तक बनी रहती थी। कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी ऐसे भण्डारणों का उल्लेख मिलता है, जो वर्षा, आंधी और किसी प्रकार की आपदाओं से अप्रभावित रहते थे। अनुयोगद्वार सूत्र में धान्य-भण्डारण के लिए मिट्टी के बड़े-बड़े भाण्डों के प्रयोग का उल्लेख मिलता है, जिनमें मुख, इदुर - सूत या बालों की बनी बोरी, आलिन्द - धान्य रखने का बर्तन विशेष और उपचारि - (ओचार) विशाल कोठार सम्मिलित हैं। भण्डारण से पूर्व धान्य की कटाई, खलियान पर लाना और साफ करने की जो विधियाँ बताई गई है, वे आज भी पारम्परिक कृषि में गाँवों में अपनाई जाती है। फसल काटने को 'असिसहि' कहा गया जाता था। कटाई का कार्य स्वयं किसान द्वारा किया जाता था और अधिक होने पर दूसरे व्यक्तियों से भी करवाया जाता था काटने के बाद धान्य खलवाड़ (खलिहान) पर लाया जाता, उसकी मड़ाई की जाती तथा उड़ावनी से उसे साफ किया जाता था। राजप्रश्नीय सूत्र” में एक खलिहान के सुन्दर दृश्य का वर्णन आया है। एक तरफ धान्य के ढेर लगे हुए हैं, दूसरी तरफ उड़ावनी हो रही है और रक्षक पुरूष भोजन कर रहे हैं। स्पष्ट है कि स्त्रियाँ, बच्चे और बूढ़े, सभी खेती-बाड़ी में सहयोग करते थे। कृषि-उपकरण ___ आगम-युग में कृषि प्रमुख धन्धा होने से उत्कर्ष पर था। कृषि के निमित्त से तथा कृषि के आसपास अनेक उद्योग विकसित थे। अनेक प्रकार के कृषि उपकरणों और औजारों का वर्णन शास्त्रों में प्राप्त होता है। व्याख्या प्रज्ञप्ति में तैयार फसलों को काटने के लिए 'असिड का उल्लेख है। ज्ञाताधर्मकथा और निशीथ चर्णि में द्राँति और हँसुए से फसल काटने का उल्लेख है। प्रश्न व्याकरण में हल, कुलिय, कुदाल, कैंची, सूप, पाटा, मेढ़ी आदि कृषि उपकरणों का उल्लेख हैं। खेती के लिए हल, कुलिय और दन्तालग इन तीन प्रकार के हलों का प्रयोग किया जाता था। हल चलाने के बाद भी जो भूमि कड़ी रह जाती थी उसे कुदाल से तोड़ा जाता था। (96)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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