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________________ मुख्य श्रावक आनन्द गाथापति का प्रमुख व्यवसाय कृषि-कार्य था। उसके पास 500 हल-प्रमाण से भी अधिक कृषि भूमि थी, जिसकी उसने 500 हल-प्रमाण तक मर्यादा कर ली थी। उस भूमि पर कृषि-कार्य होता था। एक हल से निवर्तन (40,000 वर्ग हाथ) भूमि जोती जा सकती थी। भरत चक्रवर्ती का गाथापति रत्न भी कृषि-कार्य करवाता था। कृषि को जीवनदायिनी मानकर लोग कृषि-उपकरणों की पूजा भी करते थे। कृषि-भूमि . कृषि का इतना विकास था कि कृषि से सम्बन्धित अनेक प्रयोग और. प्रक्रियाएँ सम्पन्न की जाती थी, जिससे पैदावार बढ़े। लोगों को कृषि-भूमि, खाद और मिट्टी का ज्ञान था। उस समय की कृषि किसी भी प्रकार के रासायनिक और अप्राकृतिक खादों, कीटनाशकों आदि से रहित थी, इसलिए स्वास्थ्य, पर्यावरण और अहिंसा की दृश्टि से उपयुक्त थी। काली मिट्टी वाली भूमि उपजाऊ और कशि योग्य मानी जाती थी जबकि पथरीली और ऊसर भूमि में खेती नहीं की जाती थी। लोग कृषि-ज्ञान से सम्पन्न थे। कृषि और ग्राम्य अर्थव्यवस्था . प्राचीन भारत में गाँवों की संख्या वर्तमान से कई गुना अधिक थी। गाँव, कृषि और पशुपालन परस्पर जुड़े हुए थे। पशुपालकों के गाँव को "घोश" कहा जाता था। अनाज को एकत्रित और सुरक्षित करने के लिए जंगल में तथा पहाड़ी पर लघु-गाँव बसाये जाते थे, उन्हें "सम्बाध" या "संवाह" कहा जाता था। जिन गाँवों के चारों ओर मिट्टी की प्राचीर बनाई जाती थी, उन्हें "खेट" कहा जाता था। सुरक्षा और सुविधा की दषश्ट से कुछ गाँवों के बीच एक केन्द्रीय माँव बनाया जाता था, जो नगर से छोटा और आसपास के गाँवों से बड़ा होता था, ऐसे केन्द्रीय गाँव को "खर्वट" कहा जाता था। इसके चारों ओर भी मिट्टी की प्राचीर होती थी। कौटिल्य ने 200 गाँवों के बीच एक "खर्वट" बनाने के लिए कहा है। जिन गाँवों के आसपास बहुत दूर तक कोई गाँव नहीं हो, उसे "मंडब" कहा जाता था। बृहत्कल्पभाष्य में आदर्श गाँव की विशेशताएँ बताई गई हैं - - जहाँ पानी के लिए कुआँ, सरिता, सरोवर या पर्याप्त जल-स्रोत हों, - आसपास खेत हो, - पशुओं के लिए चरागाह हो, (92)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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