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________________ परिच्छेद एक प्राथमिक उद्योग व कृषि संसार के सभी प्राणी कुदरती जीवन चक्र के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते हैं। परन्तु मानव ने हर क्षेत्र में नियमबद्ध व्यवस्थाओं को स्थापित किया है। इनमें आर्थिक गतिविधियाँ प्रमुख हैं। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने कर्मभूमि के आरम्भ में मनुष्य जाति को आर्थिक जीवन की शिक्षाएँ दीं। आगमों में आर्थिक जीवन को स्पष्ट करने वाली बातें और घटनाएँ यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं। इन गतिविधियों को निम्नानुसार वर्गीकृत कर सकते हैं - 1. प्राथमिक उद्योग - कृषि, पशुपालन, उद्यानिकी, वानिकी, खनन आदि। 2. द्वितीयक उद्योग - गृह-कुटीर उद्योग, लघु और बड़े उद्योग। 3. व्यापार व वाणिज्य - स्वदेशी-विदेशी व्यपार, आयात-निर्यात आदि। इन सबका आगमों के सन्दर्भ में विवेचन प्राचीन भारत का दिग्दर्शन कराएगा। कृषि भारत गाँवों का देश है। वर्तमान में यहाँ करीब 7 लाख गाँव है। गांधीजी के अनुसार गाँवों में भारत की आत्मा निवास करती है। कृषि अथवा खेती-बाड़ी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। कृषि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए आधारभूत उद्योग है। अधिकतम उद्योग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर आधारित होते हैं। भारत की 65 से 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। आज से हजारों वर्ष पहले आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि ही था। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने सभ्यता के आरम्भ में कृषि का सूत्रपात किया। भारत दुनिया का सबसे पहला किसान-मुल्क है और कृषि-कार्य सभ्यता की प्रथम सीढ़ी है।' .. . जैन आगमों में कृषि को आर्य-कर्म कहा गया है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में बताया गया है कि भगवान ऋषभदेव ने प्रजा-हित के लिए सुख-सुविधा के लिए कृषि आदि का उपदेश दिया था - पयाहियाए उवदिसई। उमास्वाति ने तत्वार्थ सूत्र * के स्वोपज्ञ भाष्य में आर्य कर्म में कृषि को भी गिनाया है - कार्याः यजनायाजनाध्ययनाध्यापन कृषिवाणिज्योनिपोषण वृत्तयः। भगवान महावीर के (91)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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