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________________ caca ca ca cace ca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 09929 | एवोल्लंघ्य तथापरिणामयुक्ता वैक्रियग्रहणयोग्या भवन्ति।ता अपि च प्रदेशवृद्ध्या प्रवर्धमाना << अनन्ता एवेति तावद् यावद् एकादिप्रचुरपरमाणुनिर्वृत्तत्वात् सूक्ष्मपरिणामयुक्तत्वाच्च // वैक्रियस्याग्रहणयोग्या भवन्ति। एवं प्रदेशवृद्धया प्रवर्धमानाः खल्वग्रहणयोग्या अप्यनन्ता , एवेति, ताश्चाहारकस्य अल्पपरमाणुनिवृत्तत्वाद् बादरपरिणामोपेतत्वाच्च अग्रहणयोग्या एवेति।। 6 एवमाहारकस्य तैजसस्य भाषायाः आनापानयोर्मनसः कर्मणश्च अयोग्ययोग्यायोग्यानां c वर्गणानां प्रदेशवृद्धयुपेतानामनन्तानां त्रयं त्रयमायोजनीयम्। (वृत्ति-हिन्दी-) (अब) वर्तमान प्रसंग में उनके उपयोग (व्यावहारिक स्थिति) को c स्पष्ट कर रहे हैं -इनमें एक वर्गणा तो (एक प्रदेशी) परमाणुओं की है, इसी प्रकार उसके बाद दो-प्रदेशी (दो-दो परमाणुओं) की एक वर्गणा है, इसी तरह एक-एक परमाणु की वृद्धि, & करते हुए संख्येय प्रदेश वालों की संख्येय वर्गणाएं हैं, इसके बाद अनन्तप्रदेशवालों की * अनन्त वर्गणाएं हैं- (ये सभी) औदारिक शरीर द्वारा ग्रहण-अयोग्य हैं। इन्हें पार करके , a (अनन्त वर्गणाओं के बाद) विशिष्ट परिणाम वाली, औदारिक शरीर द्वारा ग्रहणयोग्य वर्गणाओं की संख्या अनन्त ही है। इन्हें भी पार कर, प्रदेश-वृद्धि के साथ बढ़ने वाली, अनन्त वर्गणाएं हैं जो उसी औदारिक शरीर के ग्रहण-योग्य नहीं होतीं, क्योंकि वे प्रभूत (प्रचुर) द्रव्यों से बनी ल और (अति) सूक्ष्म परिणाम वाली होती हैं, इसलिए औदारिक के लिए अग्राह्य होती हैं। वे ही cवर्गणाएं वैक्रिय शरीर के लिए भी ग्रहण-योग्य नहीं होतीं, क्योंकि उनके लिए वे अल्प & परमाणुओं से बनी और बादर (स्थूल) परिणाम वाली होती हैं। इसके बाद प्रदेश-वृद्धि से " & वृद्धिंगत होती हुई उन अनन्त वर्गणाओं को पार कर विशिष्ट परिणाम वाली और वैक्रिय " शरीर के लिए ग्रहणयोग्य वर्गणाएं विद्यमान होती हैं। वे वर्गणाएं भी प्रदेश-वृद्धि से वृद्धिंगति , होती हुई अनन्त ही होती हैं। किन्तु इनके आगे एकादि प्रचुर परमाणुओं से निर्मित एवं सूक्ष्म परिणामों से युक्त होती हुई वर्गणाएं विद्यमान हैं जो वैक्रिय शरीर के लिए ग्रहणयोग्य नहीं है ca होतीं। इसी प्रकार प्रदेश-वृद्धि से वृद्धिंगत होती हुईं ये अग्राह्य वर्गणाएं भी अनन्त ही होती हैं। " ca वे भी, आहारक शरीर के लिए अग्रहणीय ही होती हैं, क्योंकि वे अल्प परमाणुओं से बनी " & और स्थूल परिणाम से परिणत होती हैं। इसी प्रकार, आहारक, तैजस, भाषा, आनापान " (उच्छ्वास-निःश्वास), मन, व कानण प्य की ब्रहणा अयोग्य, ग्रहणयोग्य और फिर राहण-.. अयोग्य -इस क्रम से स्थित तथा प्रदेशवृद्धि के साथ वृद्धिंगत होने वाली अनन्त वर्गणाओं में प्रत्येक के 'त्रिक' (तीन-तीन वर्ग) बनाने चाहिएं। - 206 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)DecRODO 333333333333 23333333333333333333 33333322 - 188888888888888888888888888
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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