SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ A RRRRRRRRR හ හ හ හ හ හ හ ග ග >> >> >> >> नियुक्ति-गाथा-39-40 (हरिभद्रीय वृत्तिः) & आह- कियत्प्रदेशं तद् द्रव्यम्, यत् तैजसभाषाद्रव्याणामपान्तरालवर्ति जघन्यावधिप्रमेयमित्याशय तद्धि परमाण्वादिक्रमोपचयाद् औदारिकादिवर्गणानुक्रमतः प्रतिपाद्यमिति।अतस्तत्स्वरूपाभिधित्सया गाथाद्वयमाह (नियुक्तिः) ओरालविउव्वाहारतेअभासाणपाणमणकम्मे / अह दव्ववग्गणाणं, कमो विवज्जासओ खित्ते // 39 // कम्मोवरिं धुवेयर-सुण्णेयरवग्गणा अणंताओ। चउधुवणंतर-तणुवग्गणा य मीसो तहाऽचित्तो // 40 // [संस्कृतच्छायाः- औदारिक-वैक्रियाऽऽहार-तैजस-भाषाऽऽनपान-मनःकर्मषु / अथ द्रव्यवर्गणानां क्रमो विपर्यासतः क्षेत्रे ॥कर्मोपरि धुवेतर-शूब्येतरवर्गणा अनन्ताः / चतुर्युवानन्तर-तनुवर्गणाश्च मिश्रस्तथाऽचित्तः॥] (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) तैजस व भाषा द्रव्यों के अन्तराल में स्थित द्रव्य जघन्य CC अवधिज्ञान का विषय होता है। वह कितने प्रदेशों के परिमाण वाला होता है? इस आशंका का उत्तर है- ‘परमाणु आदि क्रम के उपचय के आधार पर और औदारिक आदि वर्गणाओं के CM अनुक्रम से उस द्रव्य का प्रतिपादन होता है'। इसलिए इनके स्वरूप को कहने की इच्छा से (आगे) दो गाथाएं कह रहे हैं (39-40) . (नियुक्ति-हिन्दी) द्रव्य वर्गणाओं का क्रम इस प्रकार है:- औदारिक, वैक्रिय, आहार, तैजस, भाषा, आनपान, मन व कार्मण / क्षेत्र-विषयक वर्गणाओं का क्रम (ग्रहण-अयोग्य, & ग्रहण-योग्य, ग्रहण-अयोग्य -इस प्रकार) विपरीत (अर्थात् परस्पर विपरीतता लिये हुए, है)। कर्मवर्गणा के (ही) रूप में (ग्रहण-अयोग्य) ध्रुववर्गणा, अध्रुव वर्गणा, शून्यान्तर वर्गणा, अशून्यान्तर वर्गणा, चार ध्रुवानन्तर वर्गणा, चार तनु वर्गणाएं- (औदारिक, वैक्रिय, आहारक व तैजस), मिश्रस्कन्ध वर्गणा, और अचित्त (महा)स्कन्ध वर्गणा। 333333333333 (r)(r)(r)(r)(r)(r)c&000000000000 203 bu
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy