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________________ 333333333333333333333333333333333333333333333 a cace cace cacace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 (वृत्ति-हिन्दी-) तीसरी गाथा की व्याख्या की जा रही है- भरत में, अर्थात् (सम्पूर्ण) / ce 'भरत' क्षेत्र जब (क्षेत्र-दृष्टि से) अवधि का विषय हो तो काल की दृष्टि से उसका विषय आधा >> & मास कहा गया है। इसी प्रकार, (क्षेत्र-दृष्टि से) जम्बूद्वीप तक अवधि का विषय हो तो (काल, की दृष्टि से अवधि का विषय) साधिक मास (कुछ अधिक महीना) होता है। (समस्त) मनुष्य लोक अवधि का विषय हो तो (काल की दृष्टि से एक) वर्ष विषय होता है। मनुष्यलोक (अवस्थान) अढ़ाई द्वीप-समुद्रपरिमित (मनुषोत्तर पर्वत तक) माना गया है। क्षेत्र की दृष्टि से . & बाह्य (मनुष्य-लोक से बाहर स्थित) रुचक नामक द्वीप को अवधि जब विषय करता " ca (देखता) है, तब काल की दृष्टि से वर्ष-पृथक्त्व (2 से लेकर नौ वर्ष) पर्यन्त अवधि का विषय होता है- ऐसा समझना चाहिए। यह तृतीय गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 34 // 4 (हरिभद्रीय वृत्तिः) ca चतुर्थगाथा व्याख्यायते-संख्यायत इति संख्येयः, सच संवत्सरलक्षणोऽपि भवति। " तु-शब्दो विशेषणार्थः। किं विशिनष्टि? संख्येयो वर्षसहस्रात्परतोऽभिगृह्यते इति, तस्मिन् // संख्येये। काले' कलनं कालः, तस्मिन् काले अवधिगोचरे सति, क्षेत्रतस्तस्यैव अवधेर्गोचरतया, . 6. द्वीपाश्च समुद्राश्च द्वीपसमुद्रा अपि भवन्ति संख्येयाः।अपिशब्दात् महानेकोऽपि तदेकदेशोऽपि, इति। तथा काले असंख्ये ये पल्योपमादिलक्षणेऽवधिविषये सति, तस्यैव असंख्येयकालपरिच्छेदकस्यावधेः क्षेत्रतः परिच्छेद्यतया द्वीपसमुद्राश्च भक्तव्याः' विकल्पयितव्याः। 1 . कदाचिदसंख्येया एव, यदा इह कस्यचिन्मनुष्यस्य असंख्येयद्वीपसमुद्रविषयोऽवधिरुत्पद्यते / * इति।कदाचिन्महान्तः संख्येयाः, कदाचिद् एकः, कदाचिदेकदेशः स्वयम्भूरमणतिरश्चोऽवधेः / विज्ञेयः, स्वम्भूरमणविषयमनुष्यबाहावधेर्वा योजनापेक्षया च सर्वपक्षेषु असंख्येयमेव क्षेत्रमिति ca गाथार्थः // 35 // __(वृत्ति-हिन्दी-) चतुर्थ गाथा की व्याख्या की जा रही है- (संख्येयकाल को जाने . & तो...) यहां संख्येय का अर्थ है- जिसकी गिनती की जा सके। वह संख्येय 'संवत्सर' होता . है। 'तो' यह पद विशेषता व्यक्त कर रहा है। यह क्या (या किसकी) विशेषता बता रहा है? & (वह यह बता रहा है कि) 'संख्येय' से यहां हजार वर्षों से अधिक काल को ग्रहण करना , चाहिए। उस संख्येय काल में। 'कलन' (गिनती) ही काल है। वह काल जब अवधि का विषय : (ज्ञेय) हो तो क्षेत्र की दृष्टि से उसी अवधि के संख्यात द्वीप व समुद्र भी विषय होते हैं। 'भी' , - 194 (r)necken@cr@ @ce@ @cR90090880900
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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