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________________ आगम अद्दुत्तरी 14. वल्कलचीरी गणधर सुधर्मास्वामी चंपा नगरी में समवसृत हुए। राजा कोणिक वंदना करने गया। उसकी दृष्टि मुनि जंबू पर पड़ी। उसका रूप-लावण्य देखकर वह विस्मित हुआ। उसने सुधर्मा से पूछा-'भगवन्! इस महती परिषद् में यह मुनि घृत से सिंचित अग्नि की भांति दीप्त और मनोहर है। इसका क्या कारण है? क्या मैं यह मानूं कि इसने पूर्वजन्म में शील का पालन किया, तपस्या की अथवा दान दिया, जिससे इसको ऐसी शरीरसंपदा प्राप्त हुई है?' ___ सुधर्मा बोले-'राजन् ! सुनो। तुम्हारे पिता महाराज श्रेणिक ने भगवान् महावीर से प्रश्न पूछा, तब महावीर ने कहा-'एक बार मैं (महावीर) राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में ठहरा हुआ था। राजा श्रेणिक तीर्थंकर की उपासना करने के लिए अपने प्रासाद से निकला। उसके आगे-आगे दो पुरुष अपने-अपने कुटुंब की बात करते हुए चल रहे थे। उन्होंने एक मुनि को आतापना लेते हुए देखा। वह मुनि दोनों बाहुओं को ऊपर उठाए हुए एक पैर पर खड़ा था।' उनमें से एक बोला-'अहो! यह महात्मा ऋषि सूर्याभिमुख होकर आतापना ले रहा है। दूसरे व्यक्ति ने मुनि को पहचान लिया।' वह बोला-'क्या तुम नहीं जानते कि यह महाराज प्रसन्नचन्द्र है। इसके कैसा धर्म? इसने बालक को राज्य देकर अभिनिष्क्रमण किया है।' वह बालराजा मंत्रियों द्वारा राज्यच्युत कर दिया जाएगा। इसने राज्य का नाश कर डाला। न जाने इसके अन्तःपुर का क्या होगा?' ध्यान में व्याघात करने वाले इन वचनों को मुनि ने सुना और सोचा-'अहो! वे अनार्य अमात्य मेरे द्वारा प्रतिदिन सम्मानित होते रहे हैं। अब वे मेरे पुत्र से विपरीत हो गए हैं।' यदि मैं वहां होता तो मैं उन पर अनुशासन करता। यह सोचते हुए मुनि को वह कारण वर्तमान में घटित होने जैसा दिखाई देने लगा अतः वह मन ही मन उन अमात्यों के साथ युद्ध करने लगा। उसी समय तीर्थंकर के दर्शनार्थ प्रस्थित महाराज श्रेणिक वहां आए।
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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