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________________ इत्येतदालोचनज्ञानापेक्षया नीयते, "तेणं सहे त्ति उग्गहिए' एतत्त्वर्थावग्रहापेक्षया, इति सर्वं सुस्थतामनुभवति। न चातः परं भवतोऽप्याचार्य! किञ्चिद् वक्तव्यमस्ति, यदि हि युक्त्यनुभवसिद्धेनाऽर्थेन सूत्रे विषयविभागव्यवस्थापितेऽपि वादी जयं न प्राप्स्यति, तदा तूष्णीमाश्रयन्तु विपश्चितः, विचारचर्यामार्गस्य स्वाग्रहतत्परेण त्वयैव लुप्तत्वात् // इति गाथार्थः // 273 // तदत्र सूरिः परस्येषद्गर्वानुविद्धामज्ञतामवलोकयन् मार्गावतारणाय विकल्पयन्नाह तं वंजणोग्गहाओ, पुव्वं पच्छा स एव वा होज्जा। पुव्वं तदत्थवंजणसंबंधाभावओ नत्थि॥२७४॥ [संस्कृतच्छाया:- तद् व्यञ्जनावग्रहात्तु पूर्वं पश्चात् स एव वा भवेत् / पूर्वं तदर्थव्यञ्जनसम्बन्धाभावतो नास्ति // ] यद्यनुपहतस्मरणवासनासन्तानस्तदर्थावग्रहात् पूर्व व्यञ्जनावग्रहो भवतीति यदुक्तं प्राक्, तद् भवानपि स्मरति। ततः किम्?, इति चेत् / उच्यते- यदेतद् भवदुत्प्रेक्षितं सामान्यग्राहकमालोचनं तत् तस्माद् व्यञ्जनावग्रहात् पूर्व वा भवेत्, पश्चाद् वा भवेत्, स एव वा व्यञ्जनावग्रहोऽप्यालोचनं भवेत्?, इति त्रयी गतिः, अन्यत्र स्थानाभावात्। किञ्चाऽतः?, इत्याह- पूर्वं तद् नास्तीति संबन्धः। अवग्रह किया' -इस (कथन) को अर्थावग्रह की अपेक्षा से लेना चाहिए, इस प्रकार सब (कुछ) समीचीन (सुसंगत) हो जाता है। इसके बाद तो हे आचार्य! आपके लिए कुछ कहना उचित नहीं होता। युक्ति व अनुभव से सिद्ध अर्थ (व्याख्यान) द्वारा सूत्र में विषय-विभाग की व्यवस्था किये जाने पर भी यदि वादी जय नहीं प्राप्त करे तो विद्वानों को चुप ही रहना चाहिए। अपने आग्रह पर अड़े हुए आपने स्वयं ही विचार-प्रक्रिया का रास्ता लुप्त (बन्द, अवरुद्ध) कर दिया है| यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 273 // .. अब सूरि (भाष्यकार) परपक्ष की अल्प गर्व से पूर्ण अज्ञता को देखते हुए, उसे सही मार्ग पर लाने के उद्देश्य से विकल्प प्रस्तुत कर रहे हैं // 274 // तं वंजणोग्गहाओ, पुव्वं पच्छा स एव वा होज्जा। पुव्वं तदत्यवंजणसंबंधाभावओ नत्थि // - [(गाथा-अर्थ :) वह (आलोचन ज्ञान) या तो व्यञ्जनावग्रह से पूर्व होगा या बाद में होगा। पूर्व में तो वह होगा नहीं, क्योंकि व्यञ्जन-सम्बन्ध का (ही) वहां अभाव है।] व्याख्याः - यदि स्मृति, वासना की परम्परा अनवरत बनी रहे तो अर्थावग्रह से पहले व्यञ्जनावग्रह होता है- यह जो आपने पहले कहा है, वह आपको तो याद ही होगा / (प्रश्न-) हां, याद है, किन्तु उससे क्या? उत्तर दे रहे हैं- यह जो आपने जिस सामान्यग्राहक आलोचन ज्ञान की उद्भावना (प्रस्तुति) की है, वह उस व्यअनावग्रह से पूर्व होगा या बाद में? या वही अर्थात् व्यञ्जनावग्रह ही आलोचन ज्ञान होगा? यही तीन विकल्प आपके सामने हैं, अन्यत्र (कोई दूसरी) आपकी स्थिति नहीं हो सकती। (प्रश्न-) तो इससे क्या हुआ? उत्तर दिया- (यदि प्रथम विकल्प मानते हैं तो --- विशेषावश्यक भाष्य -------- 399 र Mike ---------- विशषावश्यक भाष्य -
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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