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________________ किञ्च समुदाए जइ णाणं देसूणे समुदए कहं नत्थि?। समुदाए वाऽभूयं कह देसे होज्ज तं सयलं?॥ 202 // [संस्कृतच्छाया:- समुदाये यदि ज्ञानं देशोने समुदये कथं नास्ति?। समुदाये वाऽभूतं कथं देशे भवेत् तत् सकलम्?॥] समुदायज्ञानवादिन् ! यदि विषयद्रव्यसंबन्धसमयानामसंख्येयानां समुदाये ज्ञानमर्थावग्रहलक्षणमभ्युपगम्यते, तर्हि चरमसमयलक्षणो योऽसौ देशस्तेन न्यूने समुदाये- चरमैकसमयोनेष्वसंख्यातेषु समयेष्वित्यर्थः। तत् कथं नास्ति?, समस्त्येव, प्रमाणोपपन्नत्वात्। तथाहि- सर्वेष्वपि शब्दादिद्रव्यसंबन्धसमयेषु ज्ञानमस्तीति प्रतिजानीमहे, ज्ञानोपकारिशब्दादिद्रव्यसंबन्धसमयसमुदायैकदेशत्वादिति हेतुः, अर्थावग्रहसमयवदिति दृष्टान्तः॥ अत्राह- ननु शब्दादिविषयोपादानसमयसमुदाये ज्ञानं केनाऽभ्युपगम्यते, येन समुदायैकदेशत्वात् प्रथमादिसमयेषु सर्वेष्वपि तत् प्रतिज्ञायते?;मया होकस्मिन्नेव चरमसमये शब्दादिद्रव्योपादाने ज्ञानप्रसव इष्यते, इत्याशक्याह- 'समुदाए वाऽभूयमित्यादि। दूसरी बात- . 202 // समुदाए जइ णाणं देसूणे समुदए कहं नत्थि? | समुदाए वाऽभूयं कह देसे होज्ज तं सयलं? // . [(गाथा-अर्थ :) यदि समुदाय में ज्ञान को मानते हैं तो देशोन (कुछ कम, चरमसमय रहित) . समुदाय में वह कैसे नहीं है? अथवा जो समुदाय में नहीं है तो (उस समुदाय के) एक अंश (चरम समय) में वह (ज्ञान) समग्र रूप से (अकस्मात्) कैसे (प्रकट) हो सकता है?] ___ व्याख्याः- समुदाय में ज्ञान मानने वाले हे (महानुभाव)! यदि विषय द्रव्य से सम्बद्ध असंख्येय समयों के समुदाय में अर्थावग्रह लक्षण ज्ञान का सद्भाव स्वीकार करते हैं तो चरम समयवर्ती अंश से न्यून (रहित) समुदाय में, अर्थात् चरम समय से रहित असंख्यात समयों में, उस ज्ञान को कैसे नहीं मानते? (वस्तुतः) वह ज्ञान आखिर कैसे नहीं है? अर्थात् ज्ञान है ही, क्योंकि यही प्रमाणसंगत है (ही) -यह हमारी प्रतिज्ञा (पक्ष व साध्य का उद्घोष) है (अर्थात् 'समस्त शब्दादि द्रव्यसम्बद्ध समय' पक्ष है, और उसमें ज्ञान साध्य है, या ज्ञानयुक्त समस्त शब्दादि-द्रव्य-सम्बद्ध समय -धर्मी, धर्मविशिष्ट साध्य है)। इस (अनुमान) में हेतु है- ज्ञानोपकारी शब्दादि-द्रव्यसम्बद्ध समय-समुदाय का एकदेश होना / दृष्टान्त है- अर्थावग्रह समय की तरह। __यहां (समुदायज्ञानवादी ने) कहा (शंका)- शब्दादि विषयों के उपादान समयों के समुदाय में ज्ञान के अस्तित्व को कौन मान रहा है जो आप समुदाय-एकदेश होने से प्रथमादि सभी समयों के समुदाय में ज्ञान के अस्तित्व को कौन मान रहा है जो आप समुदाय-एकदेश होने से प्रथमादि सभी समयों में भी उस ज्ञान (के अस्तित्व) का प्रतिपादन कर रहे हैं? हम तो यह मानते हैं कि एक (मात्र) ----- विशेषावश्यक भाष्य -- ---- 295
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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