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________________ तत्र व्यञ्जनं तावत् किमुच्यते?, इत्याह वंजिजइ जेणत्थो घडो व्व दीवेण वंजणं तं च। उवगरणिंदियसहाइपरिणयद्दव्वसंबंधो // 194 // [संस्कृतच्छाया:- व्यज्यते येनार्थो घट इव दीपेन व्यञ्जनं तच्च / उपकरणेन्द्रियशब्दादिपरिणत-द्रव्यसम्बन्धः॥] व्यज्यते प्रकटीक्रियतेऽर्थो येन, दीपेनेव घटः, तद् व्यञ्जनम्। किं पुनस्तत्?, इत्याह- 'तं चेत्यादि / तच्च व्यञ्जनमुपकरणेन्द्रियशब्दादिपरिणतद्रव्यसंबन्धः / इन्द्रियं द्विविधम्-द्रव्येन्द्रियं, भावेन्द्रियं च। तत्र नित्त्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम्, लब्ध्युपयोगी भावेन्द्रियम्। निर्वृत्तिश्च द्विधा- अङ्गुलासंख्येयभागादिमाना कदम्बकुसुमगोलक-धान्यमसूर-काहला-क्षुरप्राकार-मांसगोलकरूपा, शरीराकारा च श्रोत्रादीन्द्रियाणां पञ्चानामपि यथासंख्यमन्तर्निवृत्तिः, कर्णशष्कुलिकादिरूपा तु बहिर्निर्वृत्तिः। तत्र इन (दोनों अवग्रहों) में व्यञ्जनावग्रह किसे कहते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में भाष्यकार कह रहे हैं // 194 // वंजिज्जइ जेणत्यो घडो व्व दीवेण वंजणं तं च। . उवगरणिंदियसद्दाइपरिणयद्दव्वसं बंधो // [(गाथा-अर्थ :) जिस प्रकार दीपक द्वारा घट (पदार्थ) अभिव्यजित होता है (घट प्रकाशित, प्रकट होता है और दीपक उसमें कारण है), उसी प्रकार जिस (अवग्रह) के द्वारा अर्थ व्यक्त (प्रकाशित) हो, वह व्यंजनावग्रह है। उपकरण-इंद्रियों का शब्दादि (विषयों के रूप में) परिणत द्रव्यों के साथ जो परस्पर सम्बन्ध होता है, वह 'व्यञ्जन' है (उससे अर्थ का प्रकाशन व्यञ्जनावग्रह है)।] व्याख्याः- जिस प्रकार दीपक से घट प्रकाशित होता है, उसी प्रकार जिससे पदार्थ अभिव्यक्त या प्रकट होता है, वह 'व्यञ्जन' है। वह क्या है? उत्तर दिया- (तच्च)। वह 'व्यञ्जन' है- उपकरणइंद्रियों और (उनके विषय) शब्दादि-परिणत द्रव्य, इन दोनों का परस्पर-सम्बन्ध / इन्द्रियां दो प्रकार की होती हैं- (एक) द्रव्येन्द्रिय और (दूसरी) भावेन्द्रिय / इनमें निर्वृत्ति व उपकरण (इन्द्रियां) द्रव्येन्द्रिय (अर्थात् जातिनाम कर्म व शरीर नाम कर्म के उदय से उत्पन्न, शारीरिक प्रतिनियत आकार वाली पौद्गलिक इंद्रियां) होती हैं, और लब्धि व उपयोग रूप इन्द्रिय भावेन्द्रिय होती हैं। निर्वृत्ति (रचना) भी दो प्रकार की होती है- अन्तर्निर्वृत्ति (अपने-अपने) आवरण के क्षयोपशम से विशिष्ट आत्मप्रदेशों की इन्द्रियाकार रूप में रचना और बहिर्निवृत्ति (उन आत्मप्रदेशों से सम्बद्ध स्थान में शरीर के प्रदेशों की . तदनुरूप रचना)। अंगुल के असंख्येय भाग आदि परिमाण वाली तथा कदम्बकुसुमगोलक (कदम्ब फूल के गुच्छे जैसी, श्रोत्रेन्द्रिय), धान्य मसूर (के तुल्य, चक्षुरिन्द्रिय), काहला (वाद्यविशेष के आकार वाली, घ्राणइन्द्रिय), क्षुरप्र (खुरपे की आकृति वाली मांसखण्ड रूप, रसनेन्द्रिय), तथा शरीराकार (वाली, पूरे शरीर में व्याप्त, स्पर्शनेन्द्रिय), श्रोत्र (चक्षु, घ्राण, रसना व स्पर्शन) आदि पांचों इन्द्रियों की Na'---------- विशेषावश्यक भाष्य --------285
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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