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________________ .. वयोनिलयनादिधर्माणामिहाऽन्वयादिति / कस्यचित् पुनस्तदुभयादन्वय-व्यतिरेकोभयात् तत्र भूतेऽर्थेऽवगमनं भवेत्। तद्यथा- यस्मात् पुरुषधर्माः शिर:कण्डूयनादयोऽत्र न दृश्यन्ते, वल्ल्युत्सर्पणादयस्तु स्थाणुधर्माः समीक्ष्यन्ते, तस्मात् स्थाणुरेवाऽयमिति। न चैवमन्वयात्, व्यतिरेकात्, उभयाद् वा निश्चये जायमाने कश्चिद् दोषः, परव्याख्यानेन तु वक्ष्यमाणन्यायेन दोष इति भावः।। इति गाथार्थः // 186 // कथं पुनस्तद्-व्याख्याने न दोष:?, इत्याह सव्वो वि य सोऽवाओ भए वा होंति पंच वत्थूणि। __ आहेवं चिय चउहा मई तिहा अन्नहा होइ // 187 // [संस्कृतच्छाया:- सर्वोऽपि च सोऽपायो भेदे वा भवन्ति पञ्च वस्तूनि। आहैवमेव चतुर्धा मतिस्त्रिधाऽन्यथा न भवति // ] आदि धर्मों का वहां समन्वय (सद्भाव) है -ऐसा भान हो जाने से 'यह वृक्ष ही है' -ऐसा निश्चय हो जाता है। इसी तरह, किसी (दूसरे) को उक्त दोनों प्रकारों से, अन्वय व व्यतिरेक -इन दोनों के आधार पर, जैसे 'चूंकि यहां सिर खुजलाना आदि पुरुषगत धर्म यहां दिखाई नहीं पड़ते, (किन्तु) लता-अवरोहण आदि वृक्षगत धर्म दिखलाई देते हैं, इसलिए 'यह वृक्ष ही है' -इस रूप में सद्भूत पदार्थ का निश्चय हो सकता है। (इन तीनों प्रकारों-) अन्वय, व्यतिरेक तथा तदुभय -(यानी अन्वय व व्यतिरेक, दोनों) से निश्चय होने में कोई दोष नहीं मान जाता, किन्तु परकीय व्याख्या को मानने पर तो आगे कही जाने वाली रीति से दोष प्रसक्त होगा | यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 186 // आखिर उक्त (आपके) व्याख्यान में दोष क्यों नहीं है? -इस (प्रकार की परकीय) आशंका को दृष्टि में रखकर (उत्तर) कह रहे हैं // 187 // - सव्वो वि य सोऽवाओ भए वा होति पंच वत्थूणि। आहे व चिय चउहा मई तिहा अन्नहा होइ // [(गाथा-अर्थ :) (अन्वय, व्यतिरेक आदि के आधार पर किया जाने वाला) वह समस्त (निर्णयात्मक) ज्ञान ‘अपाय' है। यदि (अपाय व धारणा में) भेद मानेंगे तो (मति ज्ञान के) पांच भेद होने लगेगें (या मानने पड़ेंगें)। (भाष्यकार द्वारा उक्त प्रकार से अपने व्याख्यान की निर्दोषता तथा परकीय व्याख्यान की सदोषता का संकेत किये जाने पर, अन्य रीति से व्याख्यान करने वालों की ओर से) आक्षेप :(हमारे व्याख्यान के अनुसार तो) मति चतुर्विध ही होती है (पांच नहीं), (उलटे) अन्यथा (अन्य तरीके से किये गये आपके व्याख्यान के अनुसार) तो वह (मति) त्रिविध ही रह जाएगी।] ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 273 2
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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