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________________ इदमुक्तं भवति- यद्यपि करादिचेष्टाऽनन्तरभावेनाऽवग्रहादीन् जनयति, तथापि शब्दार्थ एव सा श्रुतज्ञानमेवेत्यर्थः, यस्मात् तयापि विहितया तत्र शब्दार्थप्रत्ययो भवति। अतः शब्दार्थप्रत्ययजनकत्वात् कारणे कार्योपचारात् शब्दार्थप्रत्यय एव सा, न पुनर्मतिः, तथा कर्तापि 'भोक्तुमिच्छत्यसौ' इत्यादि प्रतिपत्ता जानात्वित्यभिप्रायवानेव भाषणशक्त्यभावे करादिचेष्टां करोति। ततश्च कर्ताऽपि शब्दार्थद्योतनाभिप्रायेण क्रियमाणत्वात् करादिचेष्टा शब्दार्थ एव। ततश्चैषाऽपि श्रुतकारणत्वात् श्रुत एवान्तर्भवति, शब्दवत्, न मतौ, तथा च सत्येषा परमार्थतो मतेः कारणमेव न भवति, अत: कारणद्वारेणाऽपि न परप्रत्यायकं मतिज्ञानम्, श्रुतं तु तद्द्वारेण परावबोधकम्। इति युक्तो मूकेतरभेदाद् मति-श्रुतयोर्भेदः॥ इति गाथार्थः॥१७५ // ॥मति-श्रुतयोर्भेदचिन्ताधिकारः समाप्तः॥ कहने का तात्पर्य यह है कि यद्यपि करादि चेष्टा- अनन्तर-अव्यवहित रूप से (अपने होने के तुरन्त बाद) अवग्रह आदि को उत्पन्न करती है, तथापि वह (वस्तुतः) शब्दार्थ ही है- अर्थात् श्रुतज्ञान ही है। क्योंकि उसके किये जाने पर शब्दार्थ की प्रतीति (ज्ञान) होती है। शब्दार्थ-प्रतीति कराने वाली होने से, कारण में कार्य का उपचार करते हुए, वह (करादिचेष्टा) शब्दार्थ-प्रतीति (श्रुतज्ञानात्मक ही) है, न कि मति। भाषण-शक्ति न होने पर, 'वह भोजन करना चाहता है' इस बात को ज्ञात कराने के अभिप्राय वाला व्यक्ति ही उस करादिचेष्टा को करता है। चूंकि करादिचेष्टा शब्दार्थ के ज्ञान कराने के अभिप्राय से की जाती हैं, इसलिए वे शब्दार्थरूप ही है। इस प्रकार, श्रुत की कारण होने से वह करादिचेष्टा भी 'श्रुत' में ही अन्तर्भूत होती है, जैसे शब्द (श्रुत का कारण होने से द्रव्यश्रुत में अन्तर्भूत होता है)। किन्तु वह (चेष्टा) 'मति' में अन्तर्भूत नहीं होती। इस स्थिति में जब यह (करादिचेष्टा) वस्तुतः मति की कारण ही नहीं है, तब फिर कारण-परम्परा से भी वह मतिज्ञान पर-प्रबोधक नहीं होता, किन्तु श्रुत (ज्ञान) तो कारण-परम्परा से पर-प्रबोधक है। ...इसलिए मति व श्रुत में मूक व अमूक -इस प्रकार से भेद किया जाना युक्तिसंगत है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 175 // [मति व श्रुत के भेद सम्बन्धी चिन्तन का अधिकार समाप्त हुआ।] Mia ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 257
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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