SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तदेवं करादिचेष्टाया मतिकारणत्वमभ्युपगम्योक्तम्, सांप्रतं सा मते: कारणमेव न भवति, किन्तु श्रुतस्येति दर्शयन्नाह सा वा सहत्थो च्चिय तया वि जं तम्मि पच्चओ होइ॥ ___ कत्ता वि हु तदभावे तदभिप्पाओ कुणइ चिट्ठ॥१७५॥ [संस्कृतच्छाया:- सा वा शब्दार्थ एव तयाऽपि यत् तस्मिन् प्रत्ययो भवति। कर्तापि खलु तदभावे तदभिप्रायः करोति चेष्टाम्॥] यदि वा सा करादिचेष्टा कर-वक्त्रसंयोगादिलक्षणा / किम्? इत्याह- शब्दार्थ एव शब्दो वक्तृसमुदीरितवचनरूपस्तस्याऽर्थः शब्दार्थः श्रोतृगतज्ञाने प्रतिभासमानतदभिधेयवस्तुरूपः श्रुतज्ञानमिति तात्पर्यम्। किमित्यसौ शब्दार्थ एव? इत्याह- यद् यस्मात् कारणात् तयाऽपि कर्ता विहितया तस्मिन् शब्दार्थे भोजनेच्छादिलक्षणे प्रतिपत्तुः प्रत्ययो भवति। तथा कर्ताऽपि तदभावे शब्दाभावे जिह्वारोगादिसद्भावात् शब्दोदीरणसामर्थ्याभाव इत्यर्थः, 'तदभिप्पाउ त्ति'। तस्मिन् शब्दार्थे भोजनेच्छादिलक्षणे परस्मै प्रतिपादयितव्येऽभिप्रायो मनोविकल्पो यस्यासौ तदभिप्रायः करोति चेष्टां कर-वक्त्रसंयोगादिलक्षणाम्। (गाथा-173 में कथित) 'दोनों के कारण भी पर-प्रबोधक हैं, अतः इन दोनों में भेद नहीं है - यह कथन खण्डित हो जाता है | यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ॥१७४॥ इस प्रकार, करादि-चेष्टा को मतिज्ञान का कारण स्वीकार करते हुए उक्त निरूपण किया गया। अब यह बताया जा रहा है कि “वह (करादि-चेष्टा) 'मतिज्ञान' की कारणभूत ही नहीं है" (175) सा वा सद्दत्थो च्चिय तया वि जं तम्मि पच्चओ होइ।। कत्ता वि हु तदभावे तदभिप्पाओ कुणइ चिटुं | [(गाथा-अर्थ :) अथवा वह (करादिचेष्टा) शब्दार्थ रूप (श्रुतज्ञान) ही है, क्योंकि उसके द्वारा उस (भोजनेच्छा आदि शब्दार्थ) में प्रतीति होती है। उस (शब्द) के अभाव में उस (भोजनेच्छा आदि रूप) अभिप्राय वाला कर्ता (करादि) चेष्टा करता है।] व्याख्याः - (वा) अथवा वह हाथ व मुख के संयुक्त होने की (जो) करादि-चेष्टा है (वह)। क्या है? उत्तर दिया- (शब्दार्थ एव) वह शब्दार्थ है- अर्थात् वह शब्द यानी वक्ता द्वारा बोले गए वचन रूप, उसका अर्थ है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह श्रोता को होने वाले ज्ञान में प्रतिभासित होने वाले और (वक्ता के) शब्द द्वारा अभिव्यक्त होने वाले (शब्दगत) अभिधेय पदार्थ रूप 'श्रुतज्ञान' है। यह शब्दार्थ किस प्रकार (सिद्ध होता) है? उत्तर दिया (यत् तया अपि)- चूंकि कर्ता द्वारा की गई उस करादि-चेष्टा से भोजनेच्छादि रूप शब्दार्थ (कथनीय अभिप्राय) में ज्ञाता को प्रतीति (ज्ञान) होती है। तथा कर्ता भी उस 'शब्द' के अभाव में, अर्थात् जिह्वादि-रोग के कारण शब्दोच्चारण की शक्ति के अभाव में, (तदभिप्रायः)- किसी दूसरे को भोजनेच्छादि रूप शब्दार्थ का प्रतिपादन करने का मानसिक विकल्प रूप अभिप्राय जिस (व्यक्ति) का होता है, वैसा व्यक्ति हाथ व मुंह के संयोग रूप चेष्टा भी करता है। 24 256 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy