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________________ पुनः परवचनमाशङ्कय तस्यैव शिक्षणार्थमाह अह उवयारो कीरइ पभवइ अत्थंतरं पि जं जत्तो। तं तम्मयं ति भण्णइ, तो मइपुव्वं जओ भणियं // 16 // भावसुयं, नेण मई वग्गसमा सुबसरिसयं तं च / जं चिंतिऊण तया तो सुयपरिवाडिमणुसरइ॥ 161 // [संस्कृतच्छाया:- अथ उपचारः क्रियते प्रभवत्यर्थान्तरमपि यद् यस्मात् / तत् तन्मयमिति भण्यते, ततो मतिपूर्वं यतो भणितम्॥ भावश्रुतं तेन मतिर्वल्कसमा शुम्बसदृशं तच्च / यच्चिन्तयित्वा तया ततः श्रुतपरिपाटिमनुसरति॥] करता / चूंकि वह मतिज्ञान आभिनिबोधिकज्ञान रूप होता है और इस रूप में वह जीव का भाव या परिणाम ही है, किन्तु शब्द तो मूर्त होने से जीवरूप नहीं है, इसलिए अमूर्तपरिणाम वाला मतिज्ञान कैसे मूर्त ध्वनिपरिणाम को प्राप्त करेगा? क्योंकि अमूर्त का मूर्तपरिणाम प्राप्त करना विरुद्ध है / अतः दृष्टान्त व दान्तिक में वैषम्य होने से यह व्याख्यान भी उपेक्षणीय (महत्त्वहीन मानने लायक) है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 159 // पुनः भाष्यकार (किसी पूर्वपक्षी के कथन को शंका के रूप में मानकर, उसको (प्रत्युत्तर द्वारा) सीख देने तथा उसके दोष को बता कर उसे सही मार्ग पर लाने) हेतु कह रहे हैं (160-161) अह उवयारो कीरइ पभवइ अत्यंतरं पि जं जत्तो। - तं तम्मयं ति भण्णइ, तो मइपुव्वं जओ भणियं // भावसुयं, तेण मई वग्गसमा शुबसरिसयं तं च / जं चिंतिऊण तया तो सुयपरिवाडिमणुसरइ // . [(गाथा-अर्थः) (पूर्वपक्षी की ओर से समाधान-) यहां हम उपचार का आश्रयण लेते हैं। जो जिससे उत्पन्न होता है, वह (कार्य) अर्थान्तर होता हुआ भी (उपचार से) तन्मय (कारण रूप) कहा जाता है (अतः मतिज्ञान व ध्वनि परिणमन में उपचार से तन्मयता संगत की जा सकती है, इस तरह दृष्टान्त व दार्टान्तिकता की विषमता समाप्त हो जाती है)। (आचार्य की ओर से सुझावपरक प्रत्युत्तर-) चूंकि भावश्रुत को मतिपूर्वक कहा गया है, अतः मति को वल्क के समान तथा भावश्रुत को शुम्ब के समान मानें, क्योंकि वक्ता मति से सोच कर, श्रुतसम्बन्धी परम्परा का अनुसरण करता है। (अर्थात् उपचार का आश्रय लेने की अपेक्षा तो जिस प्रकार से हमने समझाया है, उस प्रकार से दृष्टान्त व दार्टान्तिक में सामञ्जस्य बिठाना अधिक उचित होगा।)] 238 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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