SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ श्रुतज्ञानलक्षणस्याऽव्याप्तिदोषमुद्भावयन्नाह पर: जइ सुयलक्खणमेयं तो न तमेगिंदियाण संभवइ। दव्वसुयाभावम्मि वि भावसुयं सुत्तजइणो व्व॥१०१॥ [संस्कृतच्छाया:- यदि श्रुतलक्षणमेतत् ततो न तदेकेन्द्रियाणां संभवति / द्रव्यश्रुताभावेऽपि भावश्रुतं सुप्तयतेरिव // ] यदि श्रुतज्ञानस्येदमनन्तरगाथोक्तं लक्षणमिष्यते- श्रुतानुसारि ज्ञानं यदि श्रुतमभ्युपगम्यत इत्यर्थः, तदा तदेकेन्द्रियाणां न सम्भवति न घटते, शब्दानुसारित्वस्य तेष्वसम्भवात्, तदसम्भवश्च मन:प्रभृतिसामाग्र्यभावात्, इष्यते चाऽऽगमे ‘एगिन्दिया नियम दुयन्नाणी, तं जहा-मइअन्नाणी य सुयअन्नाणी य' इति वचनादेकेन्द्रियाणामपि श्रुतमात्रम्, इत्यव्यापकमेवैतद् लक्षणम्। अत्रोत्तरमाह- ‘दव्वसुयेत्यादि / द्रव्यश्रुतं शब्दस्तस्याऽभावेऽप्येकेन्द्रियाणां भावश्रुतमभ्युपगन्तव्यम्, सुप्तयतेरिव। इदमुक्तं भवति- यद्यप्येकेन्द्रियाणां कारणवैकल्याद् द्रव्यश्रुतं नास्ति, तथापि स्वापाद्यवस्थायां साध्वादेरिवाऽशब्दकारणं, अशब्दकार्यं च . (एकेन्द्रियों में श्रुत कैसे?) अब श्रुतज्ञान के लक्षण में अव्याप्ति दोष की उद्भावना करते हुए शंकाकार की ओर से कथन (तथा अपनी ओर से उसका समाधान भी) प्रस्तुत कर रहे हैं (101) जइ सुयलक्खणमेयं तो न तमेगिंदियाण संभवइ। दव्वसुयाभावम्मि वि भावसुयं सुत्तजइणो व्व // [(गाथा-अर्थः) यदि श्रुतज्ञान का ऐसा (पूर्वोक्त) लक्षण किया जाएगा तो एकेन्द्रियों में श्रुतज्ञान घटित नहीं हो सकेगा (फलस्वरूप अव्याप्ति दोष प्रसक्त होगा)। . . (उत्तर-) उन (एकेन्द्रियों) में भले ही द्रव्यश्रुत न हो, किन्तु भावश्रुत तो उसी प्रकार है जिस प्रकार सोए हुए यति में (भावश्रुत होता है)।] व्याख्याः- श्रुतज्ञान का यह अभी कहा गया लक्षण माना जाय, अर्थात् श्रुतानुसारी ज्ञान को 'श्रुत' माना जाय, तो एकेन्द्रियों में वह श्रुतज्ञान घटित (संगत) नहीं होगा, क्योंकि उनमें शब्दानुसारिता सम्भव नहीं है। वह इसलिए सम्भव नहीं है क्योंकि वहां (उसके लिए अपेक्षित) मन आदि सामग्री नहीं होती है; किन्तु आगम में “एकेन्द्रिय नियमतः दो अज्ञान वाले होते हैं, जैसे- मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी' इत्यादि वचन मिलते हैं जिससे उन एकेन्द्रियों को भी श्रुत होना माना गया है, इस प्रकार श्रुतज्ञान का लक्षण अव्याप्ति-दोषयुक्त ही है। अब (पूर्वोक्त शंका का भाष्यकार) उत्तर दे रहे हैं (द्रव्यश्रुत-अभावे-) द्रव्यश्रुत का अर्थ हैशब्द / उसके अभाव में भी, एकेन्द्रियों में भावश्रुत का सद्भाव मानना चाहिए, सोये हुए यति (साधु) की तरह। तात्पर्य यह है कि यद्यपि एकेन्द्रियों में अपने कारणों (शब्द आदि) के न होने से द्रव्यश्रुत का सद्भाव नहीं है, तथापि जैसे निद्रा में स्थित साधु में, कार्यकारण रूप शब्द के बिना भी श्रुतावरण a 162 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy