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________________ तदेवमुपन्यासक्रमे समर्थिते सत्याह कश्चित्-नन्वेतानि पञ्च ज्ञानानि किं परोक्षस्वरूपाणि, आहोस्वित् प्रत्यक्षाणि? इति। अत्राह- 'एत्थं चेत्यादि' एतेषु पञ्चसु ज्ञानेषु मध्ये मति-श्रुते परोक्षे, इतरत् त्ववध्यादि ज्ञानत्रयं प्रत्यक्षम् // इति गाथार्थः // 88 // तत्र प्रत्यक्षस्य लक्षणमाह जीवो अक्खो अत्थव्वावण-भोयणगुणण्णिओ जेण। तं पइ वट्टइ नाणं जं पच्चक्खं तयं तिविहं // 89 // [संस्कृतच्छाया:- जीवोऽक्षोऽर्थव्यापन-भोजनगुणान्वितो येन / तं प्रति वर्तते ज्ञानं यत् प्रत्यक्षं तकत् त्रिविधम्॥] अक्षस्तावजीव उच्यते / केन हेतुना?, इत्याह- 'अत्थव्वावणेत्यादि' अर्थव्यापन-भोजनगुणान्वितो येन, तेनाऽक्षो जीवः, इदमुक्तं भवति- 'अशू व्याप्तौ' अश्नुते ज्ञानात्मना सर्वार्थान् व्याप्नोतीत्युणादिनिपातनादक्षो जीवः, अथवा 'अश भोजने' अश्नाति समस्तत्रिभुवनाऽन्तर्वर्तिनो देवलोकसमृद्ध्यादीनर्थान् पालयति भुङ्क्ते वेति निपातनादक्षो जीवः, अश्नातेर्भोजनार्थत्वाद्, भुजेश्च पालनाऽभ्यवहारार्थत्वादिति भावः। इत्येवमर्थव्यापन-भोजनगुणयुक्तत्वेन जीवस्याऽक्षत्वं सिद्धं भवति। तमक्षं जीवं प्रति साक्षाद्गतमिन्द्रियनिरपेक्षं वर्तते यज्ज्ञानं तत् प्रत्यक्षम्। इस प्रकार, सब ज्ञानों के निर्देश में जो क्रम रखा गया है, उसके समर्थन के बाद, किसी (शंकाकार) ने पूछा कि ये पांचों ज्ञान क्या परोक्ष स्वरूप वाले हैं या प्रत्यक्ष हैं? इस प्रश्न के समाधान हेतु कहा- (अत्र च)- इन पांचों ज्ञानों में मति व श्रुत- ये दो ज्ञान परोक्ष हैं, और अवधि आदि अन्य तीन ज्ञान प्रत्यक्ष हैं / यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 8 // (प्रत्यक्ष व परोक्ष के लक्षण) अब (भाष्यकार अग्रिम गाथा में) 'प्रत्यक्ष' का लक्षण बता रहे हैं (89) जीवो अक्खो अत्थव्वावण-भोयणगुणण्णिओ जेण / तं पइ वट्टइ नाणं जं पच्चक्खं तयं तिविहं // [(गाथा-अर्थः) चूंकि जीव पदार्थों में व्याप्त होता है और पदार्थों का भोग करता (भोक्ता होता) है, इसलिए जीव को 'अक्ष' कहा जाता है। अक्ष (रूप आत्मा) के प्रति जो ज्ञान (साक्षात्) वर्तता है (आत्मा द्वारा साक्षात्, प्राप्त होता है), वह 'प्रत्यक्ष' कहलाता है। वह प्रत्यक्ष (ज्ञान) तीन प्रकार का है।] व्याख्याः- जीव को 'अक्ष' कहा जाता है। किस कारण से? उत्तर है- (अर्थव्यापन- इत्यादि) पदार्थ में व्याप्त होने तथा पदार्थों के भोक्ता होने के गुण से युक्त होने के कारण (जीव को 'अक्ष' कहा जाता है)। तात्पर्य यह है कि 'अक्ष' की निष्पत्ति 'अशू व्याप्तौ' इस धातु से या 'अश् भोजने' इस धातु से औणादिक निपातन करते हुए होती है। आत्मा चूंकि 'ज्ञान'- के माध्यम से समस्त पदार्थों में व्याप्त हो जाता है, इसलिए वह 'अक्ष' है। अथवा अश् धातु भोजन अर्थ में है। भोजन के दो अर्थ होते हैंपालन व भोग / चूंकि जीव समस्त त्रिभुवन में वर्तमान देवलोक की समृद्धि आदि पदार्थों का पालन ----------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 139 र
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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