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________________ एतदेव समर्थयते चूयाईएहिंतो को सो अण्णो वणस्सई नाम?। नत्थि विसेसत्थंतरभावाओ सो खपुष्पं व॥३६॥ [संस्कृतच्छाया:- चूतादिभ्यः कः सोऽन्यो वनस्पतिर्नाम? नास्ति विशेषार्थान्तरभावात् स खपुष्पमिव॥] चूतादिभ्यो विशेषेभ्योऽन्यः को नाम वनस्पतिः, यो व्रण-पिण्डी-पादलेपादिके लोकव्यवहारे उपयुज्येत? न कोऽपीत्यर्थः। तस्मात् समस्तलोकसंव्यवहारानुपयोगित्वाद् नास्ति सामान्यम्, खपुष्पवत् इति पूर्वोक्तमेवार्थं निगमनद्वारेणाह-'नत्थीत्यादि' तस्माद् नास्त्यसौ सामान्यवादिनाऽभ्युपगम्यमानो वनस्पतिः सद्रूपेभ्यो विशेषेभ्योऽर्थान्तरभावात् खपुष्पवत्, सद्रूपेभ्यो हि विशेषेभ्योऽर्थान्तरं भवत् असद्रूपमेव भवति, तथाभूतं च नास्त्येव खपुष्पवत् / / इति गाथार्थः // 36 // विशेषरूप ही (सिद्ध) होगा। हां, यदि विशेषों में भी 'सामान्य’ का उपचार किया जाता है, तब कोई क्षति (आपत्ति) नहीं है, क्योंकि औपचारिक एकत्व से तात्त्विक अनेकता (वास्तविक रूप में विशेषों की अनेकता) बाधित नहीं होती। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 35 // __ पूर्वोक्त विशेषवादी मत का ही समर्थन करते हुए कह रहे हैं (36) चूयाईएहिंतो को सो वणस्सई नाम? नत्थि विसेसत्यंतरभावाओ सो खपुष्पं व // [(गाथा-अर्थः) आम्र आदि (रूप में जो विशेष वृक्ष दृष्टिगोचर होते हैं, उन) से अन्य या पृथक् आखिर कौन-सा वनस्पति-नामक तत्त्व है? (वास्तविकता तो यह है कि) विशेषों से पृथक् माने जाने के कारण, (वनस्पति-सामान्य तत्त्व) आकाश-पुष्प की तरह असत् रूप या अस्तित्वहीन ही (सिद्ध होता) है।] व्याख्याः - आम्र आदि (वृक्ष-विशेषों) से अन्य या पृथक् और कौन-सीं वनस्पति है जो घाव पर लगाने या उबटन या पांव पर लेप आदि लगाने के काम में आती है? (अर्थात् अन्य कोई नहीं है।) इसलिए, समस्त लोक-व्यवहार में उपयोगी न होने के कारण, आकाश-पुष्प की तरह (ही) 'सामान्य' भी अस्तित्वहीन है- इस पूर्वोक्त अर्थ को ही निगमन-द्वार से कह रहे हैं- न अस्ति। इसलिए, सामान्यवादी द्वारा स्वीकृत वनस्पति, चूंकि सद्-रूप विशेषों से पृथक् अन्य पदार्थ है, इसलिए, आकाश-पुष्प की तरह ही, अस्तित्वहीन है, क्योंकि जो भी सद्-रूप विशेषों से पृथक्-अन्य पदार्थ (बताया जाता) है, वह (वास्तव में) आकाश-पुष्प की तरह (अस्तित्व में) होता ही नहीं। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ॥३६॥ Me 66 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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