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________________ भवनपति देवोंके शरीर और वस्त्रोंका वर्णन ] गाथा-२८ [ 87 असुरा काला नागु-दहि पंडुरा तह सुवन्न-दिसि-थणिया / कणगाभ विज्जु-सिहि-दीव, अरुण वाऊ पियंगुनिभा // 28 // गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार // 28 // विशेषार्थ कई बार देहके रंगके आधार पर भी अमुक मनुष्य किस जातिकाकिस देशका है यह हम कह सकते हैं। जैसे अति गौरवर्णसे बहुतायत युरोपियन-गोरे लोग, गेहूँ जैसे वर्णसे भारतीय जन, पीले वर्णसे चाइनीज, जापानीस, अति काले वर्णसे निग्रो (आँफ्रिकन ) लोग इत्यादि पहचाने जाते हैं, उसी तरह देवलोकमें भी देह-वर्णसे निकाय बतानेसे जाति पहचानी जाती है। जो इस प्रकार है असुरकुमार निकायके देवोंके शरीर श्याम वर्णवाले होते हैं, नागकुमार-उदधिकुमार इन दोनोंके शरीर अति श्वेत वर्णके हैं। ___ तथा तीसरे सुवर्णकुमार, आठवें दिशिकुमार, दसवें स्तनितकुमार इन तीनोंके शरीर सुवर्णकी कांतिके समान गौर-तेजस्वी होते हैं, चौथे विद्युत् कुमारों, पाँचवें अग्निकुमारों और छठे द्वीपकुमारोंके शरीर उदित होते बालसूर्य जैसे, अथवा उबलते सुवर्णकी कान्ति जैसा कुछ रक्त वर्णका होता है। और नौवें वायुकुमारके शरीरकी कान्ति ११५प्रियंगु वृक्षके वर्ण समान श्याम है अथवा 11 मयूरकी विद्यमान रंग जैसा भी कह सकते हैं, क्योंकि वह भी श्याम कहलाता है। ___ यह वर्ण स्वाभाविक भवधारणीय शरीरके लिए समझें। उत्तरवैक्रिय शरीरकी रचनामें शरीरका चाहे जैसा वर्ण कर सकनेमें वे समर्थ होते हैं। [28] अवतरण-अब असुर-कुमारादि भवनपति देवोंके वस्त्रोंका वर्ण कहते हैं असुराण वत्थ रत्ता, नागुदही-विज्जु-दीव-सिहिनीला। दिसि-थणिय-सुवन्नाणं, धवला वाऊण संझरुई // 29 // . 115. 'प्रियङ्गु 'से श्याम, हरा और भूरा इन तीनों रंगोंको समझनेका आधार कोषग्रन्थों, स्तोत्रों, यन्त्रपटों आदिके आधार पर प्राप्त होता है। यह चर्चा विस्तृत होनेसे यहाँ तो इतना समझें कि श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणने संग्रहणी गाथा 46 में 'सामा तु प्रियगुवन्ना' और चन्द्रिया टीकाकार श्री देवभद्रसूरिजीकी गाथा 25 की टीकामें 'वायवः प्रियङ्गुवत् श्यामा 'के किये गये उल्लेखसे यहाँ श्याम अर्थ लेना घटित है। 116. 'मेचकः शिखिकण्ठाभः' (दुर्गकोष) मेचक अर्थात् श्यामवर्ण, वह किसके जैसा है तो मयूरके कण्ठके वर्ण जैसा / इस कथनसे मयूरकण्ठको श्याम कहा है, जब कि कोषादि अनेक ग्रन्थोंमें भूरा (नीला) वर्ण कहा है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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