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________________ 86 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-२७ ( अर्थात् जम्बूद्वीप जितने बड़े) हैं, मध्यम भवन संख्याता कोटि योजन प्रमाणवाले और सबसे उत्कृष्ट प्रमाणवाले भवन असंख्याता कोटानुकोटि योजनके होते हैं / [26] अवतरण-असुरकुमार-नागकुमारादि देवोंको पहचाननेके लिए, उनके मुकुट आदि आभूषणों में आये हुए चिह्नोंका निरूपण करते हैं चूडामणि-फणि-गरुडे, वज्जे तह कलस-सीह-अस्से य। गय-मयर-वद्धमाणे, असुराईणं मुणसु चिंधे // 27 / / गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार // 27 // विशेषार्थ-जिस प्रकार बहुत जनसंख्यावाले एक बड़े शहरमें बसनेवाले मनुष्योंको अपने-अपने देशके शिरोवेष्टन अर्थात् पगड़ीसे हम जल्दी पहचान सकते हैं कि यह गुजराती, यह सूरती, यह मारवाडी, यह काठियावाड़ी है; उसी प्रकार राजकीय क्षेत्रमें देख तो अमुक विभागके पुलिसोंकी टोपी पर अमुक प्रकारके बिल्लोंके चिह्न, अमुक विभागवालोंके लिए अमुक निशानियाँ होती हैं उसके अनुसार देवलोकमें भी देव असंख्याता हैं; उनमें किस निकायका कौन है ? यह आसानीसे पहचाननेके लिए प्रत्येक निकायके देवोंके मुकुटादिमें चिह्न होते हैं। प्रथम असुरकुमारके मुकुट में चूडामणि अर्थात् मुकुटमें रत्नमणिका चिह्न होता है। दूसरे नागकुमारके आभूषणमें फणि-धर-सर्पका चिह्न होता है। तीसरे सुवर्णकुमारके आभूषणमें गरुडका चिह्न होता है, चौथे विद्युत्कुमारके मुकुटमें वस्त्र ( शक्रायुध )का चिह्न होता है, उसी तरह पांचवें अग्निकुमारके आभूषणमें पूर्ण कलशका चिह्न होता है, छठे द्वीपकुमारके आभूषणमें सिंहका चिह्न होता है, सातवें उदधिकुमारके मुकुटमें अश्वका चिह्न होता है, आठवें दिशिकुमारके मुकुटमें हाथीका चिह्न होता है, नवें पवनकुमारके आभूषणमें मगरमच्छका चिह्न होता है और दसवें स्तनितकुमार निकायके देवोंके मुकुटमें ११४शराव-सम्पुट अर्थात् ऊपर-नीचे सम्पुट अर्थात् दो जोडे हुए दीप दानपात्रके आकारका चिह्न होता है। इस तरह दसों निकाय अलग-अलग रूपमें पहचाने जाँए इसलिए मुकुटादिमें चिह्न बताये हैं। कुछ ग्रन्थकार मुकुटमें नहीं लेकिन दसों निकायोंके देवोंके आभूषणों में चिह्न बताते हैं। [27] अवतरण-अब भवनपति देवोंके शरीरका वर्ण कहते हैं 114. शरावका अर्थ मिट्टीका दीप दानपात्र तथा रामपात्र होता है, उसका सम्पुट अर्थात् दोनोंको जोड़ना, उससे जो आकार बनता है, उसका दूसरा नाम 'वर्धमान ' है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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