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________________ 80 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 20-21-22 १०"नारकीके जीवोंको मारना-पीटना, छेदन-भेदन करना आदिमें आनन्द मानते हैं / ___ क्योंकि ये जन्मान्तरके संस्कार देवगतिमें साथ ही लेकर आये हैं। अरे ! उसके प्रभावसे ही तो यह स्थान पाया है। [ 19 ] अवतरण-पूर्वोक्त दसों निकायके दक्षिण-उत्तर विभागके इन्द्रों के नाम कहते हैं चमरे बली अ धरणे, भूयाणंदे य वेणुदेवे य / तत्तो य वेणुदाली, हरिकंते हरिस्सहे चेव // 20 // अग्गिसिह अग्गिमाणव, पुन्न विसिढे तहेव जलकंते / जलपह तह अमियगई, मियवाहण दाहिणुत्तरओ / / 21 // वेलंबे य पभंजण, घोस महाघोस एसिमन्नयरो। ११°जंबुद्दीवं छत्तं, मेरे दंडं पहू काउं // 22 // गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार // 20-21-22 / / विशेषार्थ-भवनपतिके प्रत्येक निकाय दक्षिण तथा उत्तरविभागमें बाँटे हुए हैं, अतः दस दक्षिणविभाग तथा दस उत्तरविभाग कुल मिलाकर (20) बीस विभाग हैं। प्रत्येक विभागमें एक एक इन्द्र स्थित है अतः कुल बीस इन्द्र हुए / , ___ उन इन्द्रोंके नाम हैं-प्रथम असुरकुमार निकायके दक्षिणदिशाके विभागमें चमरेन्द्र और उत्तरदिशामें बलीन्द्र, दूसरे नागकुमार निकायकी दक्षिणदिशाका धरणेन्द्र और उत्तरदिशाका भूतानन्देन्द्र और तीसरे सुवर्णकुमार निकायकी दक्षिणदिशाका वेणुदेवेन्द्र और उत्तरदिशाका 109. किसीको शंका हो कि यह तो देवता जैसी अत्यन्त समझदारीकी अवस्था है फिर भी ऐसी बाल-चेष्टा क्यों करते होंगे तो राजाका कुत्ता हल्का भोजन न करे, किन्तु कुत्तेकी जाति है इसलिए जूता तो काटेगा ही इसी तरह देवत्व मिल जाने पर भी नरकके निराधार, निर्बल, पराधीन और दुःखी जीवों पर सत्ता और बलका क्रूर उपयोग करके क्रीडा-कुतूहल द्वारा मनमें आनन्द मनाते हैं / 110. तुलना करें- जम्बूद्दीवं काऊण छत्तयं मंदरं च से दंडं / पभू अन्नयरो इंदो, एसो तेसिं बलविसेसो // पभू अन्नयरो इंदो जम्बुद्दीवं तु वामहत्थेण / छत्तं जहा धरिज्जा, अन्नयओ मंदरं धित्तु // 1 // ' . .. भवनपतिके प्रत्येक इन्द्रकी शक्तियाँ कैसी हैं, उनकी सामान्य जानकारी पानेके लिये ऊपरकी गाथा संग्रहणी-सूत्रकी टीका तथा देवेन्द्रस्तव देखिये /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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