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________________ * 316 * * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * चौथी परिभाषा-'श्रुत' का एक अर्थ 'शास्त्र' होता है। इसलिए शास्त्र भी एक प्रकारसे श्रुतज्ञान ही है। और इसके कारण ही कार्तिक शुक्ल पंचमीके दिन धर्मशास्त्रपोथियाँ पधराकर ज्ञान स्थापनाकी रचना की जाती है। और इसके कारण ही इस पंचमीको ज्ञानपंचमी तथा दिगम्बरमें इसे 'श्रुतपंचमी' शब्दसे पहचाना जाता है / श्रुतोपासक, श्रुताराधना, श्रुतभक्ति, श्रुतालेखन इत्यादि शब्दोंका निर्माण भी इसके कारण हुआ है। पाँचवीं परिभाषा-'श्रुत' शब्दका संस्कृत 'श्रुतम् ' तथा उसका अर्थ होता हैसुना हुआ। इस लिए सुना हुआ ज्ञान मी 'श्रुत' है। यह किस प्रकार ! .. तो शास्त्रोंका अर्थ होता है शब्दोंका भण्डार / इन शब्दोंका निर्माण सुननेसे ही हुआ है / तो प्रश्न होता है कि किस प्रकार ! तो तीर्थकर-अरिहंत-परमात्माने केवलज्ञान ( सर्वज्ञता) प्राप्त करनेके बाद विश्वके स्वरूपको प्रत्यक्ष देखा और लोकहितार्थके लिए उस स्वरूपका प्रतिपादन सबसे पहले श्रोताओंके बीच किया / उस समय उनके प्रमुख पट्टशिष्योंकी ओरसे ग्रहण की गयी त्रिपदीके आदेशानुसार समीने मिलकर जो विशाल ग्रन्थ रचना की है जिसे 'द्वादशांगी' (बारह अंग-शास्त्र ) कहा जाता है उसे, तथा उसके सिवा स्वयं भगवंतने जो देशना-प्रवचन जीवनपर्यंत दिये हैं उन्हें, उनको धारण करके जो कण्ठारूढ किया है उन्हें, और बादमें पत्रारूढ बने उन्हें, साथ ही उन्हीं शास्त्रोंको केन्द्रमें रखकर उनके आधार पर जो अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं उन्हें तथा जो आज लिखे जाते हैं तथा भविष्यमें जिन्हें लिखे जायेंगे उन तमामको 'श्रुत' कहा जाता है। इन सब कारणोंसे श्रुत शब्द शास्त्रका एक पर्याय ही बन गया है और उस अर्थमें रूढ ( प्रचलित ) हो गया है / श्रुत, सूत्र, सिद्धान्त, प्रवचन, आगम ये सभी पर्यायवाची शब्द हैं। शंका-शब्दों ही श्रुतज्ञान है क्या ? समाधान-ठीक तरहसे देखा जाये तो ये शब्द सीधे रूपमें श्रुतज्ञान नहीं है। यह श्रुतज्ञान तो शब्दके वाच्यार्थ ज्ञानको ही ( अर्थ ज्ञानको ही) कहा जाता है / 618. सुय सुत्त गंथ सिद्ध सासणे आणवयण उवऐसो। पण्णावणामागम इय एगठा पञ्जवा सुत्ते // [देखिए-विशे. आ. स्था. दश. बृ. छे. इत्यादि ] इसमें शास्त्रके 10 पर्यायवाचक नाम दिये हैं।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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