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________________ * 299 . * श्री वृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * 16 कषायोंको पुनः चार-चार प्रकारसे विभाजित करने पर 16 कषायके 64 १९७भेद बनते हैं। इन भेदोंका वर्णन ग्रन्थविस्तारके भयसे यहाँ दिया नहीं है। .. कषायका काल-ये कषाय उत्पन्न होने के बाद वैसे ही वैसे रूपमें कितने समय तक टिक सकते हैं ? जिज्ञासुके इस प्रश्नका उत्तर शास्त्रोंने इस प्रकार दिया है कि ज्ञानदृष्टिसे असंख्य जीवोंके नतीजोंका विश्लेषण और उनकी मर्यादाओंको देखनेके बाद ऐसा लगता है कि संज्वलन कषायका उदय होनेके बाद अगर जल्दीसे शमन होता नहीं है तो अधिकसे अधिक 15 दिन तक टिक सकता है। इस अवधि ( अरसा, काल ) को पूर्ण होते ही वह किसी भी प्रकारसे जरूर उपशान्त हो जायेगा / प्रत्याख्यानी प्रकारका कषाय अधिकसे अधिक चार मास, अप्रत्याख्यानी एक साल तक और अनंता- ' नुवन्धी जिन्दगीपर्यंत टिकता है। यहाँ पर विवेकदृष्टि रखकर यह समझना है कि सभी कषायोंकी अपनी अपनी समय मर्यादा पूर्ण होते ही आत्मा शांत हो ही जाती है ऐसा कोई निश्चित नियम नहीं है। अगर रागद्वेषकी उग्रता बढ भी जाती है तो बादके अथवा आगेके कषायमें जीव चला जायेगा ही, जिस प्रकार संज्वलन युक्त आत्मा पंद्रह दिन होने पर भी शान्त नहीं होती है तो उसे प्रत्याख्यानीके उदययुक्त बनते देर नहीं लगेगी। और इस प्रकार अगर उत्तरोत्तर बढता भी गया तो अनंतानुबंधीमें भी चला जायेगा। और अनंतानुबंधीवाला कार्यफल (कार्यपरिणाम) की सुंदरता बढने पर संज्वलनवान् भी बन सकता है। इस प्रकार कषायकी वासना-परिणामका कालमान बताया गया है। कषायोंकी समिसाल (मिसालके साथ, दृष्टांतके साथ) घटना-कषायोंकी कालमर्यादा अथवा उनकी मन्दता-तीव्रतादि समझनेके लिए ज्ञानीजनोंने अनेक दृष्टांत खोजकर कषायोंके साथ तुलना करके जिज्ञासुओंको तृप्त किया है / इसमें संज्वलनका क्रोध जलकी लकीर जैसा, प्रत्याख्यानीका क्रोध धूलकी लकीर जैसा, अप्रत्याख्यानीका पृथ्वीकी दरार जैसा और अनंतानुबंधीका पहाडकी फूट ( दरार) 593. ये 64 भेद भी बहुत जरूरी है। यदि ऐसे चित्रविचित्र भेदोंको न समझें तो कर्मतत्त्व व्यवस्थामें अवरोध (विघ्न ) आ जाता है। जिस प्रकार अनंतानुबंधीका उदय हो ऐसी ही आत्मा नरकायुष्य बाँधकर नरकमें जाती है। अब कृष्ण वासुदेव क्षायिक सम्यग्दृष्टिवान् थे जो अनंतानुबंधीके क्षयवाले और अप्रत्याख्यानीके उदयवाले थे, तो वे तीसरे नरकमें क्यों गये 1 इसका समाधान 64 भेदोंमेंसे ही दे सकते हैं। इसलिए श्री कृष्णवासुदेवका जो अप्रत्याख्यानी कषाय था, वही कषाय अन्त समयपर उग्र बनकर अनंतानुबंधी जैसा बन गया था। श्रेणिकके लिए भी इस प्रकार ही सोचना चाहिए / बाहुबली मुनिमें संज्वलन मान कषाय पंद्रह दिनके बदले एक साल तक टिका था। वहाँ भी संज्वलनकी उग्रता. अप्रत्याख्यानीके कषाय जैसी थी, इस प्रकार समाधान सोचना चाहिए।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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