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________________ * चौबीश द्वारोंके विस्तृत वर्णन . .279 . .3. शास्त्रके सूक्ष्म अर्थका बोध पानेके लिए अथवा उसके संशयके समाधानके लिए अथवा जिनेश्वरदेवकी समवसरणादिककी ऋद्धि आदि देखनेके कार्यमें आहारक शरीर उपयोगी बनता है। ___4. भोजनको पचानेका, तेजो और शीत लेश्याको छोडनेका तथा जरूरत पड़ने पर किसीको शाप अथवा अनुग्रह वरदान देनेका कार्य तैजस शरीरके प्रभावसे ही शक्य बनता है। 5. खास तौर पर अन्यान्य भवमें गमन करनेका कार्य कार्मण शरीरका नतीजा है। संक्षिप्तमें कहे तो पाँचों शरीरका मुख्य प्रयोजन उपभोग है। 6. प्रमाणकृत भेद-मनुष्य, पशु, पक्षी, दोइन्द्रिय आदि क्षुद्र जंतु तथा वनस्पति इत्यादिका शरीर औदारिक होता है। यह शरीर अधिकसे अधिक कितना विराट (बड़ा) हो सकता है ! तो इसके प्रत्युत्तरमें शास्त्रोमें बताया है कि कुछ अधिक ऐसे एक हजार योजन / यह मान प्रत्येक वनस्पतिआश्रयी कहता है। प्रमाणांगुलसे एक हजार योजन गहरे समुद्रादि जलाशयोंमें, जिस भागमें उत्सेधांगुलसे एक हजार योजनकी गहराई हो वहाँ खीलते कमल आदि वनस्पतिका है। यहाँ पर अधिकता जो बतायी है उसे सिर्फ जलकी सपाटीसे जितना ऊपर रहता है उतनी ही समझें और स्वयंभूरमणके मत्स्योंका शरीर भी हजार योजन होता है। - - वैक्रिय शरीरकी ऊँचाई एक लाख योजनसे कुछ अधिक होती है। यह मान देवोंके उत्तर वैक्रिय तथा मनुष्यके लब्धिप्रत्ययिक वैक्रिय शरीराश्रयी समझें / यह वैक्रिय शरीर देव तथा मनुष्य दोनों कर सकते हैं। उस समय सिर्फ देव ही चार अंगुल जमीनसे ऊपर और मनुष्य जमीनस्पर्शी रहते हैं। जिसे 'कुछ अधिक' की सफलता मनुष्याश्रयी समझें - तैयार बने हुए आहारक शरीरकी ऊँचाई एक हाथकी ही होती है। तैजस और कार्मणका मान चौदहराजलोक प्रमाण होता है और लोककी चारों ओर व्याप्त होकर रहता है। यह प्रमाण कोई जीव केवली समुद्घात करता है और अपने आत्मप्रदेशोंको समग्र लोकव्यापी बनाता है तब ये आत्मप्रदेश तैजस कार्मणसे संनद्ध होता है / इसी कारणसे उक्त मान घटमान बनता है। 579. तत्त्वार्यसूत्रमें 'निरुपभोगमन्यत्' सूत्र द्वारा अमुक अपेक्षासे कार्मणको निरूपभोगी कहा है। 580. एक हाथकी अपेक्षासे एक हजार योजनका क्षेत्र 32 कोटिगुना होता है इसलिए संख्यातगुना क्षेत्र माना जाता है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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