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________________ * 268 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * ___ यह विभिन्न प्रकारके वर्ण-रंग, गंध, रस-स्वाद और स्पर्शयुक्त होता है, और शरीरधारी सूक्ष्म निगोदके जीवोंसे लेकर तमाम मनुष्यों तथा तिर्यचोंमें होता है, जिसे आगे बताया जायेगा। यह शरीर संपूर्ण जन्मपर्यंतका ही होता है। इस लिए बीचमें न तो इसे नया औदारिक बनाया जा सकता है और न तो पुराना समझकर छोड़ा जा सकता है। 2. वैक्रिय शरीर-वि-क्रिया। वि अर्थात् विविध / क्रिया अर्थात् क्रिया। ये विविध क्रिया जिसमें हो सकती है उसका नाम है 'वैक्रिय' / दूसरे शब्दोंमें समझें तो विविध या विशिष्ट प्रकारकी रूप-क्रिया करनेमें जो समर्थ होता है, उस शरीरको वैक्रिय कहा जाता है। इस शरीरको हम अपनी ग्रामिक भाषामें बहुरुपी अथवा जादुगरी शरीर कह सकते हैं। क्योंकि यह शरीर अमुक-चौकस प्रकारके वैक्रिय पुद्गल स्कंधोंका बन सकता है। ये वैक्रिय स्कंध इसी औदारिक जातिके स्कंधोंसे सूक्ष्म होते हैं। और इन्हीं स्कंधोंका स्वभाव पारा जैसा है। इसके कारण एक शरीरमेंसे अनेक शरीर, समान अथवा असमान असंख्य रूप तथा असंख्य रूपमेंसे एक बना सकते हैं। इसे सूक्ष्मातिसूक्ष्म सूईका भाग जितना या बडेसे बड़ा हजारो भील जितना बना सकते हैं, पतलेसे मोटा या मोटेसे पतला, किसी भी अवस्थावाला, किसी भी जातिके रूपवाला बना सकते हैं, आकाशगामीमेंसे पृथ्वीगामी, पृथ्वीगामीमेंसे आकाशगामी, हलकेसे भारी या भारीसे हलका, दृश्य अदृश्य रूप बन जाता है, ऐसे यथोचित मर्यादानुसार जो-जो जातिके रूप-आकार बनाना चाहते हैं, यह सब इसी शरीरसे शक्य बनता है / इस प्रकार यह शरीर विचित्र प्रकारका अथवा अद्भुत हम मान सकते हैं। ___ वैक्रिय शरीर औदारिक शरीरमें आयी हुई सात धातुओंसे रहित होता है। उसमें वैक्रिय लब्धिसे शोभाके लिए उत्पन्न किये हुए कृत्रिम दाँत, नाखून, केशादिक हो सकते हैं। देवोंके वैक्रिय शरीरमें दाँत, नाखून, केश और अस्थि-हड्डियाँ जैसे सख्त ( कठिन ) भाग अवश्य हो सकते हैं, लेकिन वे औदारिक शरीरके दाँत, अस्थि इत्यादिकी तरह अश्लील अथवा कुरूप लगते नहीं हैं। _ यह शरीर (वैक्रिय) भवप्रत्ययिक तथा लब्धिप्रत्ययिक दो प्रकारका होता है। समग्र जन्माश्रयी देवलोकके देव और नरकगतिके नारकी जीवोंके लिए भवप्रत्ययिक वैक्रिय होता
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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