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________________ * प्रथम शरीर द्वार . .267 . . यह बात भी सही है / कोई भी शरीर पुद्गल अथवा परमाणुओंके समूहसे बना है और इन्हीं पुद्गल परमाणुओंका यह स्वभाव है कि वे एक ही स्थितिमें हमेशा रहते नहीं है, इनमें आंशिक अथवा सर्वथा संयोग-वियोग अथवा पूरण-गलनादि होता ही रहता है / इसी कारणसे ही हमारे शरीरमें अच्छे-बुरेपनकी स्थितियाँ खड़ी होती है। और किसी एक समय पर इसका सर्वथा अंत भी होता है / अर्थात् धारण किये गये शरीरके परमाणुओंकी भस्म भी हो जाती है। ऐसी विनाशी और औदयिक भावसे (-कर्मोदयसे) प्राप्त होती शरीरोंकी भिन्न भिन्न स्थिति, स्वभाव तथा कर्तव्यके कारण पाँच प्रकार बताते हैं। 1. औदारिक, 2. वैक्रिय, 3. आहारक, 4. तेजस और 5. कार्मण। 1. औदारिक शरीर-'उदारैः पुद्गलैर्जातम्' अर्थात् उदार पुद्गलोंसे जो बना है, वह है औदारिक / यहाँ उदार शब्द उत्तम, स्थूल और प्रधान इन तीनोंका वाचक है। अर्थात् उत्तम पुद्गलोंका जो बना हुआ है वह / स्थूल पुद्गल स्कंधोंसे ( परमाणुओंके बाहुल्यसे) जो बना हो वह अथवा पाँचों शरीरमें जो प्रधान स्थान भुगतता है वह / धर्मसाधना तथा मोक्षकी प्राप्ति, अपने जैसे ही औदारिक शरीरकी मदद मिलती है, अतः इसे उत्तम पुद्गलोंयुक्त कहा गया है। हमारे शरीरके पुद्गल स्कंध दूसरे चार शरीरके पुद्गल स्कंधोंकी अपेक्षा बडे होनेसे 'स्थूल' कहा है। अथवा औदारिक शरीरकी अवगाहना अन्य शरीरोंकी अपेक्षासे बड़ी अर्थात् एक हजार योजनसे भी अधिक होनेके कारण भी स्थूल कहा है तथा तीर्थकर, गणधर तथा चक्रवर्ती इत्यादि इस शरीरको ही धारण करते हैं / सभी शरीरोंमें प्रधान माना जाता है इस लिए 'प्रधान' कहा है। यह शरीर चौकस प्रकारके (औदारिक वर्गणाकी जातिके) पुद्गल स्कंधोंसे रचाया जा सकता हैं। यह शरीर रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि-हड्डियाँ, मज्जा तथा वीर्य इत्यादि सात धातुओंसे बनता है। लेकिन हरेक जीवमें ये सातों धातु होनी ही चाहिए ऐसा कोई नियम नहीं है, इसमें न्यूनाधिकपन भी हो सकता है। क्योंकि इसका संबंध जीवकी विकास स्थितिके साथ है। - 573. जव कि सभी परमाणु एक समान होते है, परंतु परमाणुओंके स्कंध और स्कंधों की वर्गणाएँ तथा इनमें परमाणुओंकी जो संख्या होती है इनके कारण उसके कार्योंमें भिन्नता .सर्जाती है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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